श्री श्री श्रीजी महाराज की पावन स्मृति को शत शत नमन ! भावभीनी श्रद्धांजलि !!! Tribute to Nimbarkacharya Shri "Shri Ji" Maharaj –Maheshacharya Premsukhanand Maheshwari | Jagadguru Nimbarkacharya

jagadguru-nimbarkacharya-shri-shriji-maharaj

निम्बार्क पीठाधीश्वर आचार्य 1008 जगद्गुरु श्री श्री श्रीजी महाराज का देवलोकगमन हो गया है। श्रीजी महाराज की प्रसिद्धि निम्बार्क सम्प्रदाय में ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण भारतवर्ष के धार्मिक एवं आध्यात्मिक जगत में थी। आप उच्च कोटि के संत थे और आपके जाने से सनातन धर्म की अपूरणीय क्षति हुई है। श्रीजी महाराज की पावन स्मृति को शत शत नमन एवं भावभीनी श्रद्धांजलि !!!

- आप श्री का जन्म विक्रम सम्वत् 1986 को वैशाख शुक्ल प्रतिपदा (एकम) तदनुसार दिनांक 10 मई 1929 शुक्रवार को प्रात: 5 बजकर 45 मिनिट पर सलेमाबाद ग्राम के श्री रामनाथजी इन्दौरिया (गौड़ ब्राह्मण) तथा श्रीमती सोनीबाई (स्वर्णलता) के घर पर हुआ।

- जन्म नक्षत्र के अनुसार आपका नाम ’’उत्तमचन्द’’ रखा गया। परन्तु एक दिन एक महात्मा जी आपके घर भिक्षा लेने हेतु पधारे। संयोगवश आपकी माताजी आपको गोद में लिये हुये ही महात्मा जी को भिक्षा देने के लिये बाहर आ गई। तब आपके तेजस्वी स्वरुप को देखकर महात्मा जी ने आपकी माताजी से कहा ’’मैया तेरा यह बालक तो साक्षात रतन है, रतन।’’ उसके पश्चात आपके घरवालों ने आपका नाम ’’उत्तमचन्द’’ से ’’रतनलाल’’ रख दिया।

- आपके तेजस्वी स्वरूप, जन्म नक्षत्र एवं प्रतिभा को देखते हुये आपके गुरु अनन्त श्री विभूषित जगद्गुरु निम्बार्काचार्य श्री बालकृष्णशरण देवाचार्य जी महाराज ने 11 वर्ष 1 माह 28 दिन की आयु में विधि विधान पूर्वक पंच संस्कार युक्त विरक्त वैष्णवी दीक्षा प्रदान कर ’’श्री राधासर्वेश्वरशरण’’ नाम से विभूषित कर अपने युवराज पद पर आसीन किया।

- आपके गुरु श्री बालकृष्णशरण देवाचार्य जी महाराज के गोलोक धाम पधारनें के बाद आचार्य पीठ परम्परानुसार आप मात्र 14 वर्ष 26 दिन की आयु में अनेकों, सन्तों, महन्तों, मण्डलेश्वर, महामण्डलेश्वर तथा जयपुर, जोधपुर, किशनगढ़, उदयपुर, बीकानेर, बूंदी आदि नरेशों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में निम्बार्काचार्य पीठ पर पीठासीन हुये।

- आपकी विद्वत्ता एवं श्रीसर्वेश्वर प्रभु में असीम भक्ति को देखते हुये अल्प वय में ही आपकी प्रसिद्धि निम्बार्क जगत में ही नही, अपितु सम्पूर्ण भारत वर्ष के धार्मिक क्षेत्रों एवं विद्वज्जनों के बीच होने लगी थी। इसका प्रत्यक्षत: उदाहरण वि. सं. 2001 श्रावण मास में कुरुक्षेत्र में देखने को मिला। जहाँ सूर्यसहस्त्ररश्मि महायज्ञ के अवसर पर आयोजित सनातन धर्म सम्मेलन की मात्र 15 वर्ष की आयु में आपने एक दिन की अध्यक्षता की थी। जबकि इस सम्मेलन में जगद्गुरु श्रीशंकराचार्य जी, श्रीवैष्णवाचार्य जी एवं अन्य कई सन्त महन्त उपस्थित थे। इसी सम्मेलन के अवसर पर जगद्गुरु शंकराचार्य श्रीभारतीकृष्ण तीर्थ जी महाराज गोवर्धन पीठ (पुरी) ने वैष्णव धर्म को भविष्य में आपके हाथों में सुरक्षित देखते हुये एक धर्म सम्मेलन श्रीनिम्बार्क तीर्थ में आयोजित करने की इच्छा व्यक्त की। उस अल्प आयु में भी आपने उसी समय ही यह निर्णय कर लिया की एक दिन श्रीनिम्बार्क तीर्थ में धर्म सम्मेलन का आयोजन अवश्य करेगें और उसी निर्णय की परिणिति के रूप में सन् 1975 में श्रीनिम्बार्क तीर्थ में प्रथम अखिल भारतीय विराट् धर्म सम्मेलन का आपके सानिध्य में सफलता पूर्वक आयोजन किया गया।

श्रीजी विशेषण :-
आचार्य पीठ के आचार्यों को ’’श्रीजी’’ महाराज के नाम से सम्बोधित किया जाता है। आचार्य पीठ के आचार्यों को ’’श्रीजी’’ महाराज उच्चारित करने की परम्परा निम्बार्काचार्य श्री गोविन्दशरण देवाचार्य जी के समय मे प्रचलित हुई।