Lord Shiva (Lord Mahesha) is the originator of Guru post and hence Lord Mahesha is Adi Guru.
भगवान शिव (भगवान महेश) गुरु पद के प्रवर्तक हैं और इसलिए भगवान महेश आदि गुरु हैं।
Maheshacharya Yogi Premsukhanand Maheshwari : “Guru” is the bridge built to connect the Soul with God (Jeev with Shiv) and the job of the Guru is to show the right destination and right path to the disciple. The bridge that takes one to the destination or from one side to the other (like from darkness to light, from ignorance to knowledge, from problem to solution) is Guru. Without the blessings and guidance of the Guru, even the Gods cannot attain divinity, cannot maintain their divinity but God is the protector, Guru is only the guide. Guru is not God, God is only God, Guru is just a guide. Be it directly or indirectly, if the Guru starts calling himself God then he is not even worthy of being made a Guru or called a Guru. The Guru should not think of becoming the God of his disciple, he should remain a Guru only, this is the importance of the post of Guru. On the auspicious occasion of Guru Purnima, respectful greetings to all the Gurus of the universe!
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...लेकिन आजकल एक नया शिगूफा निकला है- उसे ये समझें, इसे वो समझें। जैसे की- बहु अपने ससुर को पिता समझे, शिष्य गुरु को भगवान समझें... आदि। ऐसे ही किसी को कुछ और समझने से ही समस्याएं निर्मित होती है क्यों की बस समझा जाता है, (मन से) माना नहीं जाता है। लेकिन अच्छा और सही यही है की, जो है उसे वही समझें तो ही व्यवस्थाएं सही और ज्यादा बेहतर तरीके से कार्य करती है। कोई भी व्यवस्था तब अव्यवस्था में, अराजकता में बदल जाती है, समस्याएं खड़ी कर देती है जब कोई खुद को अथवा किसी और को... वो जो है उससे ज्यादा माने या कुछ अलग माने।
गुरु वहीं जो शिष्य में सही-गलत को समझने की क्षमता निर्मित करें। बिना गुरु रूपी सेतु के मंजिल पाना लगभग नामुमकिन लेकिन गुरु "मंजिल" नहीं! आदिगुरु भगवान महेश स्वयं परमेश्वर होने के कारन इसके अपवाद है, वे सेतु भी है और मंजिल भी। लेकिन वर्तमान में जो भी सशरीर (मानव शरीरधारी) गुरु है, शिष्य उन गुरुओं को भगवान/ईश्वर या ईश्वर का अवतार नहीं बल्कि गुरु ही समझें, यही गुरु की महत्ता है। और इस महत्ता के साथ गुरु निश्चितरूपसे आदर और सम्मान के अधिकारी है।
आचार्य (गुरु) –
धर्मज्ञो धर्मकर्ता च सदा धर्मपरायणः ।
तत्त्वेभ्यः सर्वशास्त्रार्थादेशको गुरुरुच्यते ॥
अर्थ : धर्म को जाननेवाले, धर्म के अनुसार आचरण करनेवाले, धर्मपरायण, और सब शास्त्रों में से तत्वों का आदेश करनेवाले गुरु कहे जाते हैं।
समाचार्य (गुरु नहीं परन्तु गुरु के समान) –
प्रेरकः सूचकश्वैव वाचको दर्शकस्तथा ।
शिक्षको बोधकश्चैव षडेते गुरवः स्मृताः ॥
अर्थ : प्रेरणा देनेवाले, (कोई बात अथवा कार्य) सूचित करनेवाले, सच बतानेवाले, रास्ता दिखानेवाले, शिक्षा देनेवाले अर्थात शिक्षक (teacher) और बोध करानेवाले – ये सब गुरु समान हैं।
आचार्य (गुरु) –
धर्मज्ञो धर्मकर्ता च सदा धर्मपरायणः ।
तत्त्वेभ्यः सर्वशास्त्रार्थादेशको गुरुरुच्यते ॥
अर्थ : धर्म को जाननेवाले, धर्म के अनुसार आचरण करनेवाले, धर्मपरायण, और सब शास्त्रों में से तत्वों का आदेश करनेवाले गुरु कहे जाते हैं।
समाचार्य (गुरु नहीं परन्तु गुरु के समान) –
प्रेरकः सूचकश्वैव वाचको दर्शकस्तथा ।
शिक्षको बोधकश्चैव षडेते गुरवः स्मृताः ॥
अर्थ : प्रेरणा देनेवाले, (कोई बात अथवा कार्य) सूचित करनेवाले, सच बतानेवाले, रास्ता दिखानेवाले, शिक्षा देनेवाले अर्थात शिक्षक (teacher) और बोध करानेवाले – ये सब गुरु समान हैं।
– योगी प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी (पीठाधिपति, माहेश्वरी अखाड़ा)
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