The first worshiper of the Maheshwari Community and Maheshwaris, is Lord Mahesha (Sakar swarup of Lord Shiva) and Mahesh Navami is origin day of Maheshwari Community
आराध्य अर्थात जिनकी आराधना की जानी चाहिए अथवा जो प्रथम आराधना के अधिकारी होते है. वंश (समाज / धर्म) एवं कुल (परिवार) के रक्षक देवी-देवता को "आराध्य" कहा जाता है. शास्त्रों के अनुसार पंचायतन पूजा अर्थात पांच देवी-देवताओं (प्राधान्यक्रम से वंशदेवता, कुलदेवता (कुलदेवी / कुलमाता), ग्रामदेवता या ग्रामदेवी, पितृ और ईष्टदेव) की आराधना, पूजा-अर्चना करनी चाहिए. दरअसल "वंशदेवता और कुलदेवी" वंश एवं कुल (परिवार) के रक्षक होते है, उस वंश (समाज) के कल्याण की जिम्मेदारी उनपर होती है. इसलिए हमेशा अपने अपने "वंशदेवता और कुलदेवी (कुलमाता)" की ही आराधना करनी चाहिए. इससे हमेशा ही मनवांछित फल प्राप्त होता है, लेकिन बहुत लोगों को अपने वंशदेवता और कुलमाता के बारे में पता ही नहीं होता अथवा वे अपनी पसंद के किसी अन्य देवी-देवता को मानते है इसलिए उन्हें जीवन में बहुत तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
वंशदेवता और कुलदेवता (कुलमाता) घर-परिवार या वंश परम्परा की प्रथम पूज्य (प्रथम आराध्य) तथा मूल अधिकारी देवता होते है. सर्वाधिक आत्मीयता के अधिकारी इन देवताओं की स्थिति घर-परिवार के मुखिया जैसी महत्वपूर्ण होती है, अत: इनकी उपासना या पूजा-आराधना को महत्त्व दिए बगैर सारी पूजा एवं अन्य कार्य व्यर्थ हो सकते है. इनका प्रभाव इतना महत्वपूर्ण होता है की यदि ये रुष्ट हो जाए तो अन्य कोई देवी देवता दुष्प्रभाव या हानि कम नही कर सकते या रोक नही लगा सकते. इसे यूं समझे - यदि घर का मुखिया (पिताजी / माताजी) आपसे नाराज हो तो पड़ोस का या बाहर का कोई भी आपके भले के लिए आपके घर में प्रवेश नही कर सकता या आपकी मदत नहीं कर सकता क्योकि वे "बाहरी" होते है. अतः प्रत्येक व्यक्ति और परिवार को अपने वंशदेवता और कुलदेवता (कुलमाता) को जानना चाहिए तथा यथायोग्य पूजा-भक्ति-आराधना करनी चाहिए, जिससे की परिवार की सुरक्षा-उन्नति होती रहे. हो सकता है कि काम-काज की व्यस्तता के कारण आपको नित्य पूजन-पाठ का समय नहीं मिलता हो, लेकिन इस बात का विशेष तौर पर ध्यान रखने की जरूरत है कि भले ही किसी देवी-देवता को न पूछे लेकिन वंशदेवता और कुल की देवी को जरूर पूजे या स्मरण करते रहे. ऐसा करने से न केवल घर में शांति बनी रहेगी वहीं सुख समृद्धि भी हमेशा कायम रहेगी. माना जाता है कि वंशदेवता और कुलदेवी को और कुछ नहीं चाहिये, उनकी मूर्ति या तस्वीर के सामने सिर्फ अगरबत्ती या दीपक ही लगा दिया जाये तो भी वे प्रसन्न हो जाते है.
माहेश्वरी वंश (माहेश्वरी समाज) के वंशदेवता है भगवान महेश और कुलमाता / कुलदेवी अपने अपने परिवारों (खाप या उपनामों) के अनुसार अलग अलग होती है. माहेश्वरीयों के वंशदेवता भगवान महेशजी क्यों है इसका भी एक कारन / सन्दर्भ है. माहेश्वरी उत्पत्ति कथा के अनुसार, जब ऋषियों के शाप से 72 क्षत्रिय उमराव पत्थरवत (मृतवत) हो गए तो इसे जानकर इन 72 उमरावों के पत्नियों ने क्षमा माँगते हुए ऋषियों से इसका उपाय पूंछा. उपाय में ऋषियों ने उन्हें ॐ नमो महेश्वराय इस दिव्य अष्टाक्षरी मंत्र का जाप करने को कहा. इस जाप से प्रसन्न होकर भगवान महेश ने उन्हें अपने सगुन-साकार और पारिवारिक स्वरुप में (सपत्नीक / पार्वती के साथ) दर्शन दिये और उन 72 क्षत्रिय उमरावों को शापमुक्त करते हुए पुनर्जीवन दिया और कहा की आज से तुम्हारा नया वंश शुरू हुवा है, यह वंश 'माहेश्वरी' के नाम से जाना जायेगा. इस तरह से भगवान महेशजी द्वारा माहेश्वरी वंशोत्पत्ति हुई है. भगवान महेश के द्वारा उत्पत्ति और 'माहेश्वरी' नाम प्राप्त होने के कारन 'भगवान महेश' माहेश्वरी वंश (माहेश्वरी समाज) के एवं हरएक माहेश्वरी परिवार के वंशदेवता है.
वंशदेवता का मतलब होता है की उस वंश (समाज) के कल्याण की प्रथम (सर्वोच्च) जिम्मेदारी उनपर होती है. जैसे की कुछ विशेष परिवारों के कल्याण की जिम्मेदारी (प्राधान्यक्रम में द्वितीय जिम्मेदारी) कुलदेवी / कुलमाता की होती है. इसलिए हरएक समाज अपने अभिवादन में अपने अपने समाज के वंशदेवता को नमन करता है, उनकी जय करता है की उनपर वंशदेवता की कृपा सदैव बनी रहे. इसीलिए माहेश्वरीयों का अभिवादन है- जय महेश ! जैसे हरएक परिवार अपने अपने कुलमाता के लिए ही समर्पित होता है वैसे ही हरएक समाज अपने अपने वंशदेवता के प्रति ही समर्पित होता है. सभी देवी-देवताओं की भक्ति-पूजा-आराधना तो की जा सकती है लेकिन प्रथम आराध्य अपने अपने समाज के आराध्य- "वंशदेवता और कुलदेवी" ही होते है.
अभिवादन- जय महेश !
जयकारा- जय भवानी ! जय महेश !!
अष्टाक्षर महामंत्र- ॐ नमो महेश्वराय
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