Know The True Meaning Of Dhanteras Festival | Dhanteras means Indian Health Day / National Ayurveda Day | Dhanteras | Lord Dhanvantari | Dhantrayodashi | Diwali festival | Date | Significance

Dhan which means Lord Dhanvantari, the god of Health and Teras which means Trayodashi


Maheshacharya Premsukhanand Maheshwari: The celebration of five-day Diwali festival (Deepawali Parv), begins with Dhanteras. The word Dhanteras is made of two words - Dhan which means Lord Dhanvantari, and Teras which means 13th day, Trayodashi. Dhanvantari, the god of health, appeared on Kartik Krishna Trayodashi date itself, hence this date is known as Dhanteras or Dhantrayodashi. Dhanteras means Dhanvantari Teras, Dhanvantari's manifest day (Bhagwan Dhanvantari ka prakaty diwas). The word “Dhanteras” is formed by combining wealth from Dhanvantari and the day of its appearance ‘Teras’. Lord Dhanvantari is the deity of health, longevity and glory. Dhanteras is related to wealth in the form of health, not wealth in the form of gold, silver, diamonds and jewellery. To get the blessings of Lakshmiji, the goddess of wealth, one needs health and long life, that is why Dhanteras festival is celebrated 2 days before Mahalakshmi Pujan with wishes for health and longevity.

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धनतेरस (भारतीय स्वास्थ्य दिवस / राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस) की
हार्दिक शुभकामनाएं... Happy Dhanteras to You & All


कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी तिथि को ही आरोग्य के देवता धन्वन्तरि का प्राकट्य हुआ था इसलिए इस तिथि को धनतेरस या धनत्रयोदशी के नाम से जाना जाता है. धनतेरस अर्थात धन्वन्तरि तेरस. धन्वन्तरि से धन और उनके प्राकट्य का दिन 'तेरस' मिलकर "धनतेरस" शब्द बना है. भगवान धन्वन्तरि आरोग्य, सेहत, स्वास्थ्य, आयु और तेज के आराध्य देवता हैं (Lord Dhanvantari is God of Health). आरोग्य रूपी धन से सम्बंधित है धनतेरस, ना की सोना-चांदी-हिरे-जवारात रूपी धन से.

सही बात की जानकारी नहीं होने से तथा 'धनतेरस' में प्रयोग हुये शब्द 'धन' गलत अर्थ में प्रचारित हुवा है/प्रचारित किया है, गलत अर्थ में प्रचारित किया जा रहा है. लोग धनतेरस के दिन को सोने-चांदी के गहने/अलंकार खरीदने का शुभ दिन समझने लगे है और इसीलिए इस दिन धन अर्थात रूपया-पैसा, सोने-चांदी के गहने/अलंकार आदि खरीदते है तथा कुबेर और रूपया-पैसा, सोने-चांदी के गहनों की पूजा करते है. वस्तुतः रूपया-पैसा-सोना-चांदी-हीरे-जवारात रूपी धन खरीदने या पूजा करने के लिए महालक्ष्मी-पूजन (दीपावली) का दिन है, धनतेरस का नहीं.

स्वस्थ शरीर से ही धन का संग्रहण, संरक्षण, और उपभोग तथा दान सम्भव है. Health is first Wealth, आरोग्यम धन सम्पदा (स्वास्थ्य ही धन और संपत्ति है) यह है धनतेरस के दिन की 'धन' की परिभाषा. इसीलिए जैसे 7 अप्रैल को World Health Day होता है वैसे ही भारतीय स्वास्थ्य दिवस (The Indian Health Day) है- "धनतेरस" का दिन (इसलिए ही धनतेरस के त्यौहार को भारत सरकार ने राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप से अर्थात 'भारतीय स्वास्थ्य दिवस' के रूप में मनाने का निर्णय लिया है).

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धन की देवी लक्ष्मीजी की कृपा प्राप्त करने के लिए स्‍वास्‍थ्‍य और लम्बी आयु भी चाहिए इसीलिए महालक्ष्मी पूजन से 2 दिन पहले आरोग्‍य व दीर्घायु की कामना के साथ धनतेरस पर्व मनाया जाता है, आरोग्यदेव भगवान धन्वन्तरि की पूजा की जाती है. यह बात भारतीय जीवनदर्शन की परिपूर्णता और मानवी जीवन के लिए किये गए यथार्थ मार्गदर्शन को दर्शाती है. शास्त्रों में जीवन के 7 प्रमुख सुखों के बारे में बताया गया है, प्राधान्यक्रम में पहले स्थान पर रखा है स्वास्थ्य को- पहला सुख निरोगी काया. स्वास्थ्य को प्रथम स्थान पर रखने का कारण भी यही है कि यदि शरीर स्वस्थ न हो तो अन्य सब सुख व्यर्थ है. इसीलिए दीपावली पर्व का यह पहला दिन 'धनतेरस' स्वास्थ्य के प्रति समर्पित दिन है. स्वास्थ्य पे प्रति सजगता का दिन है- धनतेरस.

जिस प्रकार देवी लक्ष्मी सागर मंथन से उत्पन्न हुई थीं, उसी प्रकार आयुर्वेद के देवता भगवान धन्वंतरी भी अमृत कलश के साथ सागर मंथन से उत्पन्न हुए हैं. भगवान धन्वन्तरी को देवताओं के वैद्य और चिकित्सा के देवता भी बताया गया है. चिकित्‍सकों (डॉक्टर्स) और वैद्यों के लिए इस दिन का विशेष महत्‍व है. दीपावली के पांच दिवसीय पर्व का पहला दिन है- धनतेरस. इसी दिन से दीपावली पर्व की शुरुवात होती है.

भारतवर्ष की संस्कृति और भारतीय चिकित्साशास्त्र में स्वास्थ्य को आहार (भोजन) से जोड़ा गया है इसलिए धनतेरस के दिन स्वास्थ्य के अनुकूल ऐसे रसोई के बर्तन खरीदने की परंपरा है. पीतल धातु भगवान धन्वन्तरि को बहुत प्रिय है, इसलिए धनतेरस के दिन पीतल की चीज़ों का खरीदना बहुत शुभ माना जाता है. सफाई के लिए नई झाडू और सूपड़ा/सुपली खरीदकर उसकी पूजा की जाती है. इस दिन रसोईघर की साफसफाई की जाती है, रसोई में प्रयोग किये जानेवाले प्रमुख बर्तनो (जैसे की चकला/चकलुटा- यह लकड़ी का बना होता है जिसपर चपाती और रोटी बेली जाती है, बेलन, तवा, कढ़ई आदि) और चूल्हे की (वर्तमान समय में गॅस को ही चूल्हा समझे) पूजा की जाती है. ऐसी मान्यता है कि धनवंतरी भगवान संध्या काल में प्रकट हुए थे अतः संध्या के समय पूजन किया जाना उत्तम माना जाता है. पूजन में आयुर्वैदिक घरेलु ओषधियाँ जैसे आंवला, हरड़, हल्दी आदि अवश्य रखें. जल से भरे घड़े में हरितकी (हरड़), सुपारी, हल्दी, तुलसी, दक्षिणा, लौंग का जोड़ा आदि वस्तुएं डाल कर कलश स्थापना करें. भगवान धन्वंतरि की पूजा में सात धान्यों की पूजा होती है. जैसे कि गेहूं, उडद, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर. इन सब के साथ ही पूजा में विशेष रूप से स्वर्णपुष्पा के पुष्प से माँ दुर्गा का पूजन करना बहुत ही लाभकारी होता है. इस दिन भगवान धन्वंतरि के साथ ही माँ दुर्गा के पूजा का विशेष महत्व है. धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि को भोग में श्वेत मिष्ठान्न का भोग लगाना चाहिए. आयुर्वेद के देवता धन्वन्तरि के साथ ही योग के देवता भगवान महेश (शिव) और बल (स्वास्थ/शक्ति) की देवता महाकाली (देवी दुर्गा) का पूजन भी किया जाता है. धनतेरस पर हाथी की पूजा करने का भी विधान है. धनतेरस की संध्या (शाम) को यम देवता के नाम पर दक्षिण दिशा में एक दीप जलाकर रखा जाता है.

धनतेरस के संदर्भ में एक लोक कथा प्रचलित है कि एक बार यमदूतों ने यमराज से पूछा कि मनुष्य प्राणी को अकाल मृत्यु से बचने का कोई उपाय है क्या? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए यम देवता ने कहा कि जो प्राणी धनतेरस की संध्या (शाम) को यम के नाम पर दक्षिण दिशा में दीया जलाकर रखता है उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती है. इस मान्यता के अनुसार धनतेरस की शाम को आँगन मे दक्षिण दिशा में यम देवता के नाम पर दीप जलाकर रखने की परंपरा है. परिवार के किसी भी सदस्य की असामयिक/अकाल मृत्यु से बचने के लिए मृत्यु के देवता यमराज के लिए घर के बाहर दीपक जलाया जाता है जिसे 'यम दीपम' के नाम से जाना जाता है और इस धार्मिक संस्कार (विधि) को धनतेरस के दिन किया जाता है.

धनतेरस के दिन हाथी की पूजा -

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माहेश्वरी संप्रदाय (समाज) की धार्मिक परंपरा के अनुसार धनतेरस के दिन हाथी की पूजा करने का विधान है. माहेश्वरी धार्मिक मान्यता के अनुसार हाथी को स्वास्थ्य, शक्ति और ऐश्वर्य प्रदाता के रूप में 'गजान्तलक्ष्मी' कहा जाता है. हाथी के पर्याय के रूप में, जिसका सामने का दाहिना पैर आगे हो ऐसे सोने, चांदी, तांबे, पीतल, कांसे या लाल मिट्टी के हाथी को पूजा जाता है. चांदी अथवा पीतल के हाथी को पूजाघर में, हाथी का मुख उत्तर दिशा की ओर करकर रखा जाता है तथा उसकी नित्य पूजा की जाती है.

कहते हैं कि‍ एक बार महाभारत काल में धनतेरस के दिन पूरे हस्‍त‍िनापुर में गजलक्ष्मी पर्व मनाया गया. इस उत्‍सव पर हस्‍तिनापुर की महारानी गांधारी ने पूरे नगर को शाम‍िल होने के ल‍िए आमंत्रित क‍िया था लेक‍िन कुंती को नहीं बुलाया. व‍िधान के अनुसार इसमें मिट्टी के हाथी की पूजा होनी थी. ऐसे में गांधारी के 100 कौरव पुत्रों ने म‍िट्टी लाकर महल के बीच व‍िशालकाय हाथी बनाया, जि‍ससे कि‍ सभी लोग उसकी पूजा कर सके. ऐसे में पूजा में हस्‍तिनापुर की महारानी गांधारी द्वारा न बुलाए जाने से कुंती काफी दुखी थी. ज‍िससे उनके बेटे अर्जुन से मां का दुख देखा नहीं गया. उन्‍होंने मां से कहा क‍ि वह पूजा की तैयारी करें और वह म‍िट्टी का नहीं बल्‍क‍ि जीव‍ित हाथी लेकर आते हैं. फिर अर्जुन ने देवताओं के राजा इंद्र से ऐरावत हाथी को पूजने हेतु भेजने का आवाहन किया. अर्जुन के आवाहन पर इंद्र ने ऐरावत हाथी को अर्जुन के पास भेजा. अर्जुन ने हाथी को मां कुंती के सामने खड़ा कर द‍िया और कहा कि तुम इसकी पूजा करो. कुंती को ऐरावत हाथी की पूजा करते देख गांधारी को अपनी गलती का अहसास हुआ. उन्‍होंने कुंती से क्षमा मांगी. इसके बाद से ही गजलक्ष्‍मी के रूपमें हाथी की पूजा शुरू हो गई. तभी से धनतेरस के दिन सजे-धजे सोने, चांदी, तांबे, पीतल, कांसे या लाल मिट्टी के हाथी को पूजने की परंपरा आरंभ हुई. महालक्ष्मी के गजलक्ष्मी स्वरुप को हाथी के रूपमें पूजा जाने लगा.

गजलक्ष्मी- महालक्ष्मी के आठ स्वरुप है जिनके अधीन है अष्टसम्पदायें, इन्हे अष्टलक्ष्मी के नाम से जाना जाता है. इन्ही अष्टलक्ष्मीयों में से एक है- गजलक्ष्मी. इन्हीं की कृपा से बल और आरोग्य के साथ साथ धन-वैभव-समृद्धि के साथ ही राजपद का आशीर्वाद प्राप्त होता है; इसीलिए गजलक्ष्मी देवी को राजलक्ष्मी के नाम से भी जाना जाता है. गज (हाथी) को वर्षा करने वाले मेघों तथा उर्वरता का भी प्रतीक माना जाता है इसलिए गजलक्ष्मी उर्वरता तथा समृद्धि की देवी भी हैं. इसी गजलक्ष्मी को हाथी के रूपमें गजान्तलक्ष्मी के नाम से पूजा जाता है.

धनतेरस का पर्व स्वास्थ्य के प्रति समर्पित दिन होने के कारन इस दिन स्वास्थ्य साधनों के उपकरण (Health Instrument, Exercise & Fitness Instrument) खरीदने चाहिए तथा इनकी पूजा की जानी चाहिए; स्वास्थ्य से सम्बंधित सेमीनार, कार्यशाला, चिकित्सा शिबिर (हेल्थ कैंप), गोष्टी आदि का आयोजन किया जाना चाहिए, यही धनतेरस की मूल भावना के अनुरूप, संयुक्तिक और औचित्यपूर्ण है. हमें यह समझने की जरुरत है की- धनतेरस के दिन को स्वास्थ्य के दिन के रूप में भूलकर/भुलाकर इसके कुबेर पूजन और सोने-चांदी के गहने/अलंकार खरीदने के दिन के रूप में प्रचारित होने से ना केवल इस दिन की मूलभावना, मूल उद्देश्य समाप्त होता है बल्कि भारतीय संस्कृति और जीवनदर्शन को दर्शानेवाले इस पर्व की सार्थकता और औचित्य ही समाप्त हो जाता है. यह भारतीय संस्कृति की बहुत बड़ी हानि है.

धनतेरस का सन्देश यही है की इस दिन अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग होना है, जीवन में स्वास्थ्य के महत्‍व को समझना है, आनेवाले समय में अपने स्वास्थ्य को सुनिश्चित करना है, अपने बेहतर स्वास्थ्य का नियोजन करना है और भगवान धन्वन्तरि से प्रार्थना करनी है कि वे समस्त जगत को निरोग कर मानव समाज को दीर्घायु प्रदान करें.

भगवान धन्वन्तरि आप सभी को निरंतर उत्तम स्वास्थ्य, तेज (ऊर्जा) और दीर्घायु प्रदान करें यही मंगलकामनाएं !

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