Navratri is one of the most important festivals in the Sanatan Dharma. Navratri festival celebrated in honor of Goddess Durga, an aspect of Adishakti, the Supreme Goddess (Goddess Mahadevi/Maheshwari). It's celebrated all over the world, typically falling between September and October during the month of Ashvin, and lasts for nine days. Nav means nine and Ratri means nights. Maha Ashtami and Maha Navami is an important day during the festival of Navratri. Maha Ashtami falls on the eighth day of Navratri. Maha Ashtami is also known as Durga Ashtami. Usually, Maha Navami puja is celebrated on the next day of Maha Ashtami.
नवरात्रों में मां आदिशक्ति के नौ विभिन्न रुपों की पूजा की जाती है. इसी देवी आदिशक्ति को माँ पार्वती, महादेवी, महेश्वरी, दुर्गा, भगवती, शिवा (शिवानी), अम्बा, जगदम्बा, भवानी, चामुण्डा, शक्ति, पराशक्ति, जगतजननी, सर्वकुलमाता, माँ तथा मूलप्रकृति आदि नामों से भी जाना गया है. आदिशक्ति जगदम्बा की परम कृपा प्राप्त करने हेतु सम्पूर्ण भारत वर्ष में नवरात्रि का पर्व वर्ष में दो बार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तथा आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को बड़ी श्रद्धा, भक्ति व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, जिसे वसन्त व शारदीय नवरात्रि के नाम से जाना जाता है. शारदीय नवरात्रि में आने वाली अष्टमी को दुर्गा अष्टमी अथवा महा अष्टमी तथा नवमी को दुर्गा नवमी अथवा महानवमी कहा जाता है.
नवरात्रि में दुर्गाष्टमी व महानवमी पूजन का बड़ा ही महत्व है. भविष्य पुराण के उत्तर-पूर्व में भी दुर्गाष्टमी व महानवमी पूजन के विषय में भगवान श्रीकृष्ण से धर्मराज युधिष्ठिर का संवाद मिलता है, जिसमें दुर्गाष्टमी व महानवमी पूजन का स्पष्ट उल्लेख है. यह पूजन प्रत्येक युगों, सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग तथा कल्पों व मन्वन्तरों आदि में भी प्रचलित था. यह पूजन युगों युगों से निरन्तर चला आ रहा है, जो कलियुग में विशेष फलदायी है. देव, दानव, राक्षस, गन्धर्व, नाग, यक्ष, किन्नर, मनुष्य आदि अष्टमी व नवमी को पूजते है. माँ आदिशक्ति सम्पूर्ण जगत् में माँ पार्वती, महादेवी, महेश्वरी, दुर्गा आदि नाम से विख्यात हैं. माँ आदिशक्ति का पूजन अष्टमी व नवमी को करने से कष्टों का निवारण होता हैं, शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है और इच्छित मनोकामनायें पूर्ण होती है. 'दुर्गा अष्टमी और महानवमी' ये दोनों तिथि परम कल्याणकारी, धर्म की वृद्धि करने वाली, पवित्र और सुख-समृद्धि देने वाली है.
अधिकांश घरों में जातक नौ दिनों तक चलने वाले इस नवरात्रि पर्व में पूरे नौ दिनों तक व्रत (उपवास) रखते है, किन्तु माहेश्वरियों में मात्र 'साधक जातक' के ही नौ दिन व्रत रखने की परंपरा है. अन्य माहेश्वरीजन ज्यादातर केवल अष्टमी व नवमी को ही व्रत रखकर माँ आदिशक्ति की आराधना करते है. माहेश्वरी समाजजनों में अढ़ाई दिन का उपवास रखने की भी परंपरा है (अपने-अपने कुल की परंपरा के अनुसार दुर्गा अष्टमी अथवा महानवमी को दोपहर में माता को भोग बताकर उपवास छोड़ा जाता है). नवरात्रि की अष्टमी व नवमी की कल्याणप्रद, शुभ बेला श्रद्धालु भक्तजनों को मनोवांछित फल देकर व्रत व पूजन महोत्सव के सम्पन्न होने के संकेत देती है. माँ दुर्गा की आराधना से व्यक्ति एक सद्गृहस्थ जीवन के अनेक शुभ लक्षणों- "धन, ऐश्वर्य, पत्नी, पुत्र, पौत्र व स्वास्थ्य" से युक्त हो जीवन के अंतिम लक्ष्य मोक्ष को भी सहज ही प्राप्त कर लेता है. इतना ही नहीं बीमारी, महामारी, बाढ़, सूखा, प्राकृतिक उपद्रव व शत्रु से घिरे हुए किसी राज्य, देश व सम्पूर्ण विश्व के लिए भी माँ भगवती की आराधना परम कल्याणकारी है.
क्यों महत्वपूर्ण है अष्टमी व नवमी तिथि?
अष्टमी तिथि के देवता शिव (महेश्वर) है और नवमी तिथि की देवी आदिशक्ति मॉ महेश्वरी (दुर्गा) है. शास्त्रों के अनुसार महेश्वर (शिव) अर्द्धनारीश्वर है अर्थात शिव पुरूष-स्त्री दोनों का प्रतीक है. शास्त्रों में बताया गया है की मूलतः शिव और शक्ति एक ही है, अभिन्न है. जहां शिव हैं वहां शक्ति भी है और जहां शक्ति है वहीं शिव भी विराजमान हैं. शिव और शक्ति, महेश और पार्वती एकदूजे में समाहित है. शिव की सक्रिय अवस्था का नाम ही शक्ति है. शिव संकल्प-शक्ति है और पार्वती उन संकल्पों को मूर्त रूप देनेवाली क्रियाशक्ति/ऊर्जाशक्ति है (As per Devi Puran Adhi Parashakti is considered to be a main source of energy for the creation of the whole universe). शिव रूप में संकल्प किये जाते है और शक्ति (पार्वती) रूप संकल्पो को क्रियान्वित करता है. शास्त्रों में वर्णन आता है की शक्ति के बिना शिव 'शव के समान' है और शिव के बिना शक्ति 'शून्य' है. शिव के बिना शक्ति का कोई अस्तित्व नहीं और शक्ति के बिना शिव शव के समान है. शिव को शक्ति की आत्मा कहा जा सकता है और शक्ति को शिव का शरीर. ऐसा समझें की जैसे शिव आत्मा है और शक्ति है शरीर. शुभ (अच्छे) संकल्प करना और उन्हें क्रियान्वित करना यही है विजय (सफलता) का रहस्य और यही है नवरात्रि, यही है नवरात्रि का सन्देश, यही है नवरात्रि का रहस्य. इसीलिए नवरात्रि का अंतिम दिन विजय का दिन माना जाता है, इसे "विजयादशमी" कहा जाता है. नवरात्रि के व्रत, पूजा-आराधना से जातक को संकल्प लेने और उन्हें क्रियान्वित करने की शक्ति प्राप्त होती है इसीलिए नवरात्रि में और विशेष रूप से नवरात्र के अष्टमी व नवमी दोनों तिथियों में महेश (भगवान शिव के सगुन-साकार रूप के लिए प्रयोग किये जानेवाला 'महेश्वर' यह एक संस्कृत नाम है, जिसका संक्षिप्त संस्करण है- महेश) और पार्वती की एकत्रित पूजन का विशेष महत्व है.
नवरात्रि के आठवें दिन की देवी माँ महागौरी हैं. परम कृपालु माँ महागौरी कठिन तपस्या कर गौरवर्ण को प्राप्त कर भगवती महागौरी के नाम से सम्पूर्ण विश्व में विख्यात हुई. भगवती महागौरी की आराधना सभी मनोवांछित को पूर्ण करने वाली और भक्तों को अभय, रूप व सौदर्य प्रदान करने वाली है. अर्थात् शरीर में उत्पन्न नाना प्रकार के विष व्याधियों का अंत कर जीवन को सुख-समृद्धि व आरोग्यता से पूर्ण करती हैं. अष्टमी तिथि को महागौरी का पूजन करने से असंभव कार्य भी संभव प्रतीत होता है. नवरात्र के आठवें दिन मां महागौरी की पूजा करने से शादी-विवाह में आ रही अथवा आनेवाली बाधा दूर हो जाती है. अष्टमी तिथि को महालक्ष्मी नामक योगिनी जिनका वास ईशान कोण है, की पूजा का विधान भी है. माहेश्वरी समाज में दुर्गा अष्टमी की रात्रि में (आधी रात तक) माता के भजन करते हुए जागरण करने की परंपरा है (वर्तमान समय में इस परंपरा को निभाने में कमी आयी है लेकिन समाज को इस परंपरा का श्रद्धापूर्वक निर्वाहन करना चाहिए). अष्टमी की शाम से ही नवमी की तिथि लग जाती है. महानवमी का दिन नौ दिन के उपवास और तप का आखिरी दिन होता है.
नवमी तिथि की अधिष्ठात्री देवी साक्षात मां दुर्गा है. इनकी उपासना से अणिमा, गरिमा, लधिमा, ईशित्व एवं वशित्व समेत आठों सिद्धियां मिलती हैं. नवमी तिथि को ब्रह्माणी नामक योगिनी जिनका वास पूर्व दिशा में है, की पूजा का भी विधान है. उक्त तिथियों में मां दुर्गा के विभिन्न रूपों एवं योगिनियों की पूजा करने से साधक को मनोवांछित फल मिलने की बात विद्वानों ने कही है.
नवमी तिथि का यह दिन माँ सिद्धिदात्री (दुर्गा) की पूजा के लिए विशेष महत्वपूर्ण है. माँ भगवती ने नववें दिन देवताओं और भक्तों के सभी वांछित मनोरथों को सिद्ध कर दिया, जिससे माँ सिद्धिदात्री के रूप में सम्पूर्ण विश्व में व्याप्त हुई. परम करूणामयी सिद्धिदात्री की अर्चना व पूजा से भक्तों के सभी कार्य सिद्ध होते हैं, बाधाएँ समाप्त होती हैं एवं सुख व मोक्ष की प्राप्ति होती है. नवरात्रि के समापन के लिए ही नवमी पूजन में हवन किया जाता है. महानवमी के दिन हवन का विशेष महत्व है.
नवरात्रि में माँ भगवती की पूजा-आराधना करते हुए भगवती से सुख, समृद्धि, यश, कीर्ति, विजय, आरोग्यता की कामना करनी चाहिए. भूलोक के जितने व्रत एवं दान हैं उनमें नवरात्र व्रत सर्वश्रेष्ठ माना गया है, लाल चंदन व आपटा-पत्र (समी-पत्र/सोनपत्ता) से की गई माँ की आराधना विशेष फलदाई होती है. नवरात्र में मां दुर्गा के साथ-साथ देवाधिदेव महादेव, गणेशजी व सूर्य देवता की पूजा-आराधना बताई गई है. कुंजिका स्त्रोत्र, दुर्गा चालीसा, महालक्ष्मी अष्टक का पाठ करने से, चामुंडा मंत्र का जाप करने से और नौ दिवसीय देवी भागवत कथा करने से साधक पर माता की कृपा होती है. शत्रु बाधा दूर होती है. मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. नवरात्र में विघि विधान से मां का पूजन करने से सभी कार्य सिद्ध होते हैं और चित्त को शांति मिलती है.
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