माहेश्वरीयों के जीवनपद्धति का आधार है माहेश्वरी समाज की उत्पति के समय बने मूल सिद्धांत
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माहेश्वरीयों के बारे में कहा जाता है की यह समाज अपनी सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक परम्पराओं और विरासत का दृढ़तापूर्वक पालन भी करता है तथा साथ ही किसी भी अन्य समाज के साथ दूध में घुले शक्कर के समान समरस होकर रहता है. लोग अपने रहने के लिए अच्छी, अच्छे माहौलवाली जगह चुनते है लेकिन माहेश्वरी जहाँ रहने जाते है उसे ही अच्छी और अच्छे माहौलवाली जगह बना देते है. 'माहेश्वरी समाज की जीवनपद्धति' अन्य समाजों के लिए एक आदर्श और प्रेरणा मानी जाती है, माहेश्वरीयों को एक विशिष्ठ दर्जा प्रदान करती है. देश-दुनिया में माहेश्वरी समाज को, माहेश्वरीयों को यह विशिष्ठ गौरवपूर्ण दर्जा मिला है "सत्य, प्रेम और न्याय" इन माहेश्वरी समाज के तीन मूल सिद्धांतों के कारन. 3133 ईसापूर्व में जब माहेश्वरी वंशोत्पत्ति हुई उस समय भगवान महेशजी, देवी पार्वती (देवी महेश्वरी) और तत्कालीन गुरुओं ने माहेश्वरी समाज को जो वरदान दिए, जो मार्गदर्शन दिया, जो दिशा दिखाई उसीसे माहेश्वरी वंश (समाज) के मूल सिद्धांत बने है; उसीका माहेश्वरी समाज पीढ़ी दर पीढ़ी कड़ाई से पालन करता आया है उसके कारन. माहेश्वरी समाज के मूल सिद्धांत ही है माहेश्वरी समाज की पहचान. माहेश्वरी समाज के मूल सिद्धांतों का आधार है- "सत्य, प्रेम और न्याय" अर्थात अपने आचरण में- (1) सच्चाई के मार्ग पर तथा सच्चाई के साथ चलना (2) किसी के भी प्रति द्वेष की भावना मन में नहीं रखना और सभी के साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार करना (3) सभी के साथ न्यायोचित, न्यायसंगत व्यवहार/बर्ताव करना.
भगवान महेशजी और देवी पार्वती ने वरदान और आशीर्वाद देकर माहेश्वरी वंश का निर्माण करने के पश्चात महर्षि पराशर, ऋषि सारस्वत, ऋषि ग्वाला, ऋषि गौतम, ऋषि श्रृंगी, ऋषि दाधीच इन छः (6) ऋषियों को माहेश्वरी समाज का गुरु बनाया और इन्हे माहेश्वरी समाज को मार्गदर्शित करने के लिए सौपा. कालांतर में इन गुरुओं ने महर्षि भारद्वाज को भी माहेश्वरी गुरु पद प्रदान किया जिससे माहेश्वरी गुरुओं की संख्या सात हो गई जिन्हे माहेश्वरीयों में आदिगुरु कहा जाता है. माहेश्वरी समाज के इन आदि गुरुओं ने माहेश्वरी समाज को अनुशाषित और मार्गदर्शित करने के लिए जो मार्गदर्शिका बनाई थी उसमें उन्होंने कहा की कोई भी व्यक्ति या समूह अपने जीवन में जिन सिद्धांतों के पथ (मार्ग) पर चलता है, जिन सिद्धांतों के अनुसार आचरण करता है उसे ही धर्म कहते है. माहेश्वरी गुरुओं ने माहेश्वरी वंश (समाज) के आचरण के आधार (बुनियाद) के रूप में सत्य, प्रेम और न्याय इन तीन सिद्धांतों को रखा. उनके अनुसार सत्य, प्रेम और न्याय इन तीन सिद्धांतों के दायरे के अंतर्गत, सृष्टि और स्वयं के हित और विकास में किए जाने वाले सभी कर्म “धर्म” हैं. हर वह कर्म जो औरों के द्वारा हमारे प्रति किया जाना हमें अच्छा लगता हो, वह "धर्म" है (जैसे हम चाहते हैं कि दूसरे हमसे सत्य बोलें तो सत्य-भाषण धर्म है. और हर वह कर्म जो हमें हमारे प्रति किया जाना अच्छा न लगता हो वह अधर्म है जैसे हम नहीं चाहते कि कोर्इ हमारे बारे में बुरा सोचे व हमसे द्वेष रखे तो दूसरों के प्रति बुरा सोचना व दूसरों से द्वेष रखना अधर्म है). माहेश्वरी समाज के आदि गुरुओं द्वारा बनाये गए इन्ही सिद्धांतों का एक रूप है- पहले देश, फिर समाज और अंत में खुद के बारे में सोचना. "सर्वे भवन्तु सुखिनः" यह माहेश्वरी समाज का मूलवाक्य/बोधवाक्य तथा "पहले देश, फिर समाज और अंत में खुद" के बारे में सोचना यह प्राधान्यक्रम माहेश्वरी समाज के मूल सिद्धांत के आधारपर बने माहेश्वरी जीवनदर्शन और माहेश्वरी संस्कृति की महानता को ही दर्शाता है.
गर्व करो अपने माहेश्वरी होने पर !
गर्व से कहो हम माहेश्वरी है ! !
जय महेश ! ! !
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