The basis of the lifestyle of Maheshwaris is the basic principles formed at the time of the origin of Maheshwari society (Hindi : माहेश्वरीयों के जीवनपद्धति का आधार है माहेश्वरी समाज की उत्पति के समय बने मूल सिद्धांत) –Maheshacharya Premsukhanand Maheshwari
Maheshacharya Premsukhanand Maheshwari: The day on which the Maheshwari community was originated (established) by Lord Maheshji, that day, that tithi was Jyeshtha Shukla Navami of Yudhishthir Samvat 9 (Samvat is a kind of calendar or method of keeping track of time, it is used in Sanatan Hindu religion). This incident happened in 3133 BC (To know about this in detail, search maheshwari utpatti book on Google). Since then, Jyeshtha Shukla Navami date came to be known as Mahesh Navami. That is, Mahesh Navami is the origin (descent) day of the Maheshwari community, the foundation day of the Maheshwari community. The Maheshwari community came into existence on the date of Mahesh Navami in 3133 BC, hence the day of Mahesh Navami, the festival of Mahesh Navami is associated with the existence of the Maheshwari community. On this day of Mahesh Navami, Lord Mahesha himself created a new society and gave it a new and unique name "Maheshwari", hence the day of Mahesh Navami is associated with this "unique identity" of "Maheshwari" of the Maheshwari society. Mahesh Navami is the biggest festival of the Maheshwari community, even bigger than Badi Teej, as it is associated with the existence of the Maheshwari community and the special identity of the "Maheshwari" name. That is why the festival of Mahesh Navami is celebrated with great reverence and enthusiasm in every Maheshwari person and every Maheshwari household, whether those Maheshwari people are living in India or in any country of the world.
Lord Maheshji himself originated (established) the Maheshwari community, hence the Maheshwari people call it " Maheshwari Vanshotpatti " and consider themselves descendants of Lord Maheshji. Maheshwari people say with great pride- we are not devotees, we are a part, we are descendants of Lord Maheshji. And Lord Maheshji, Mother Parvati, Ganeshji etc. have unwavering devotion towards the entire Mahesh family. The festival of Mahesh Navami is a symbol of complete dedication of Maheshwaris towards Mahesh-Parvati-Ganpati.
भगवान महेशजी द्वारा जिस दिन माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति (वंशोत्पत्ति) की गई थी, माहेश्वरी समाज की स्थापना की गई थी वह दिन, वह तिथि थी युधिष्ठिर संवत 9 की ज्येष्ठ शुक्ल नवमी (संवत यह एक तरह का कैलेंडर या समय का हिसाब रखने का तरीका है। यह सनातन हिंदू धर्म में उपयोग किया जाता है)। यह घटना ईसवी सन पूर्व 3133 में घटी थी (इस बारेमें विस्तारपूर्वक जानने के लिए Google पर maheshwari utpatti book सर्च करें)। तबसे ज्येष्ठ शुक्ल नवमी तिथि को महेश नवमी के नाम से जाना जाने लगा। अर्थात महेश नवमी माहेश्वरी समाज का उत्पत्ति (वंशोत्पत्ति) दिवस है, माहेश्वरी समाज का स्थापना दिवस है। ईसवी सन पूर्व 3133 में महेश नवमी की तिथि को ही माहेश्वरी समाज अस्तित्व में आया था इसलिए महेश नवमी का दिन, महेश नवमी का त्योंहार माहेश्वरी समाज के अस्तित्व से जुड़ा हुवा है। इसी महेश नवमी के दिन भगवान महेशजी ने खुद उत्पन्न किये, बनाएं एक नए समाज को "माहेश्वरी" यह एक नया और विशिष्ठ नाम दिया था इसलिए महेश नवमी का दिन माहेश्वरी समाज के "माहेश्वरी" इस "विशिष्ठ पहचान" से जुड़ा हुवा है। माहेश्वरी समाज के अस्तित्व में आने से, माहेश्वरी समाज की विशिष्ठ पहचान से जुड़ा होने से महेश नवमी यह माहेश्वरी समाज का बड़ी तीज से भी बड़ा, सबसे बड़ा त्योंहार है। इसीलिए हरएक माहेश्वरी व्यक्ति और हरएक माहेश्वरी घर-परिवार में महेश नवमी का त्योंहार बड़े ही श्रद्धाभाव से और उत्साह से मनाया जाता है फिर वह वे माहेश्वरी लोग भारत में रहनेवाले हो या दुनिया के किसी भी देश में रह रहे हो।
स्वयं भगवान महेशजी ने माहेश्वरी समाज को उत्पन्न किया था इसलिए माहेश्वरी लोग इसे "माहेश्वरी वंशोत्पत्ति" कहते है और खुद को, अपनेआप को भगवान महेशजी का वंशज मानते है। माहेश्वरी लोग बड़े गर्व के साथ कहते है– भक्त नहीं हम अंश है, भगवान महेशजी के वंश है। और भगवान महेशजी, माता पार्वती, गणेशजी आदि सम्पूर्ण महेश परिवार के प्रति अटूट श्रद्धाभाव रखते है। महेश नवमी का त्योंहार महेश-पार्वती-गणपति के प्रति माहेश्वरीयों के सम्पूर्ण समर्पण का प्रतिक है।
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माहेश्वरीयों के बारे में कहा जाता है की यह समाज अपनी सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक परम्पराओं और विरासत का दृढ़तापूर्वक पालन भी करता है तथा साथ ही किसी भी अन्य समाज के साथ दूध में घुले शक्कर के समान समरस होकर रहता है. लोग अपने रहने के लिए अच्छी, अच्छे माहौलवाली जगह चुनते है लेकिन माहेश्वरी जहाँ रहने जाते है उसे ही अच्छी और अच्छे माहौलवाली जगह बना देते है. 'माहेश्वरी समाज की जीवनपद्धति' अन्य समाजों के लिए एक आदर्श और प्रेरणा मानी जाती है, माहेश्वरीयों को एक विशिष्ठ दर्जा प्रदान करती है. देश-दुनिया में माहेश्वरी समाज को, माहेश्वरीयों को यह विशिष्ठ गौरवपूर्ण दर्जा मिला है "सत्य, प्रेम और न्याय" इन माहेश्वरी समाज के तीन मूल सिद्धांतों के कारन. 3133 ईसापूर्व में जब माहेश्वरी वंशोत्पत्ति हुई उस समय भगवान महेशजी, देवी पार्वती (देवी महेश्वरी) और तत्कालीन गुरुओं ने माहेश्वरी समाज को जो वरदान दिए, जो मार्गदर्शन दिया, जो दिशा दिखाई उसीसे माहेश्वरी वंश (समाज) के मूल सिद्धांत बने है; उसीका माहेश्वरी समाज पीढ़ी दर पीढ़ी कड़ाई से पालन करता आया है उसके कारन. माहेश्वरी समाज के मूल सिद्धांत ही है माहेश्वरी समाज की पहचान. माहेश्वरी समाज के मूल सिद्धांतों का आधार है- "सत्य, प्रेम और न्याय" अर्थात अपने आचरण में- (1) सच्चाई के मार्ग पर तथा सच्चाई के साथ चलना (2) किसी के भी प्रति द्वेष की भावना मन में नहीं रखना और सभी के साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार करना (3) सभी के साथ न्यायोचित, न्यायसंगत व्यवहार/बर्ताव करना.
भगवान महेशजी और देवी पार्वती ने वरदान और आशीर्वाद देकर माहेश्वरी वंश का निर्माण करने के पश्चात महर्षि पराशर, ऋषि सारस्वत, ऋषि ग्वाला, ऋषि गौतम, ऋषि श्रृंगी, ऋषि दाधीच इन छः (6) ऋषियों को माहेश्वरी समाज का गुरु बनाया और इन्हे माहेश्वरी समाज को मार्गदर्शित करने के लिए सौपा. कालांतर में इन गुरुओं ने महर्षि भारद्वाज को भी माहेश्वरी गुरु पद प्रदान किया जिससे माहेश्वरी गुरुओं की संख्या सात हो गई जिन्हे माहेश्वरीयों में आदिगुरु कहा जाता है. माहेश्वरी समाज के इन आदि गुरुओं ने माहेश्वरी समाज को अनुशाषित और मार्गदर्शित करने के लिए जो मार्गदर्शिका बनाई थी उसमें उन्होंने कहा की कोई भी व्यक्ति या समूह अपने जीवन में जिन सिद्धांतों के पथ (मार्ग) पर चलता है, जिन सिद्धांतों के अनुसार आचरण करता है उसे ही धर्म कहते है. माहेश्वरी गुरुओं ने माहेश्वरी वंश (समाज) के आचरण के आधार (बुनियाद) के रूप में सत्य, प्रेम और न्याय इन तीन सिद्धांतों को रखा. उनके अनुसार सत्य, प्रेम और न्याय इन तीन सिद्धांतों के दायरे के अंतर्गत, सृष्टि और स्वयं के हित और विकास में किए जाने वाले सभी कर्म “धर्म” हैं. हर वह कर्म जो औरों के द्वारा हमारे प्रति किया जाना हमें अच्छा लगता हो, वह "धर्म" है (जैसे हम चाहते हैं कि दूसरे हमसे सत्य बोलें तो सत्य-भाषण धर्म है. और हर वह कर्म जो हमें हमारे प्रति किया जाना अच्छा न लगता हो वह अधर्म है जैसे हम नहीं चाहते कि कोर्इ हमारे बारे में बुरा सोचे व हमसे द्वेष रखे तो दूसरों के प्रति बुरा सोचना व दूसरों से द्वेष रखना अधर्म है). माहेश्वरी समाज के आदि गुरुओं द्वारा बनाये गए इन्ही सिद्धांतों का एक रूप है- पहले देश, फिर समाज और अंत में खुद के बारे में सोचना. "सर्वे भवन्तु सुखिनः" यह माहेश्वरी समाज का मूलवाक्य/बोधवाक्य तथा "पहले देश, फिर समाज और अंत में खुद" के बारे में सोचना यह प्राधान्यक्रम माहेश्वरी समाज के मूल सिद्धांत के आधारपर बने माहेश्वरी जीवनदर्शन और माहेश्वरी संस्कृति की महानता को ही दर्शाता है.
गर्व करो अपने माहेश्वरी होने पर !
गर्व से कहो हम माहेश्वरी है ! !
जय महेश ! ! !
माहेश्वरीयों और महेशाचार्य के बीचमें क्या सम्बन्ध है? महेशाचार्य कौन है, उनका परिचय क्या है? उन्होंने माहेश्वरी समाज के लिए अबतक क्या कार्य किया है? माहेश्वरी समाज की महेशाचार्य परंपरा क्या है? इसे जानने के लिए यहाँ निचे दी गई लिंक पर क्लिक/टच करें।
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