अजीब लगेगा लेकिन कई माहेश्वरी लोग भी नहीं जानते इस बात को की वो इस बार जो महेश नवमी मना रहे है वो कितवी है? | How Many Years Ago Has The Origins Of The Maheshwari Community | Mahesh Navami | Maheshwari Samaj | Maheshwari Vanshotpatti Diwas

Today, most of the Maheshwari people do not know how many years ago Maheshwari Samaj was established? Why?


Maheshacharya Premsukhanand Maheshwari: Why is the foundation Day or Origin Day of Maheshwari Samaj called Mahesh Navami? Why do Maheshwari people and Maheshwari Community celebrate Mahesh Navami? Why Mahesh Navami Means Maheshwari Vanshotpatti/Utpatti Diwas is considered the biggest festival of Maheshwari community? How did Maheshwari Samaj come into existence, what happened that a new community was formed in the name of Maheshwari Samaj. Who established Maheshwari Samaj? When and in which period was Maheshwari Community established? If we Maheshwaris do not know this, are not aware of this then there is no point in celebrating Mahesh Navami festival for us Maheshwaris. And if you want to know all these things then read this article completely.


In Hindi: माहेश्वरी समाज के स्थापना दिवस या उत्पत्ति दिवस को महेश नवमी क्यों कहा जाता है? माहेश्वरी लोग और माहेश्वरी समाज "महेश नवमी" क्यों मनाता है? क्यों महेश नवमी को माहेश्वरी समाज का सबसे बड़ा त्योंहार माना जाता है? माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति आखिर हुई कैसे है, माहेश्वरी समाज कैसे अस्तित्व में आया? ऐसा क्या हुवा था की माहेश्वरी समाज के नामसे एक नया समाज बना. किसने स्थापन किया माहेश्वरी समाज को. कब, कौनसे कालखंड में स्थापन हुवा माहेश्वरी समाज. यदि हम माहेश्वरियों को यह पता नहीं है, इस बात की जानकारी नहीं है तो हम माहेश्वरियों का महेश नवमी उत्सव मनाने का कोई मतलब नहीं है. और यदि इन सब बातों को जानना है तो इस आर्टिकल को पूरा पढ़े...

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प्रतिवर्ष, ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को "महेश नवमी" का उत्सव मनाया जाता है. महेश नवमी यह माहेश्वरी वंशोत्पत्ति दिवस है अर्थात इसी दिन माहेश्वरी समाज की वंशोत्पत्ति (माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति) हुई थी. इसीलिए माहेश्वरी समाज इस दिन को माहेश्वरी समाज के स्थापना दिवस के रूप में मनाता है.

ऐसी मान्यता है कि, भगवान महेश और आदिशक्ति माता पार्वति ने ऋषियों के शाप के कारन पत्थरवत् बने हुए 72 क्षत्रिय उमराओं को युधिष्टिर संवत 9 जेष्ट शुक्ल नवमी के दिन शापमुक्त किया और पुनर्जीवन देते हुए कहा की, "आज से तुम्हारे वंशपर (धर्मपर) हमारी छाप रहेगी, तुम “माहेश्वरी’’ कहलाओगे". भगवान महेशजी के आशीर्वाद से पुनर्जीवन और माहेश्वरी नाम प्राप्त होने के कारन तभी से माहेश्वरी समाज ज्येष्ठ शुक्ल नवमी (महेश नवमी) को 'माहेश्वरी उत्पत्ति दिन (स्थापना दिन)' के रूप में मनाता है. इसी दिन भगवान महेश और देवी महेश्वरी (माता पार्वती) की कृपा से माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई इसलिए भगवान महेश और देवी महेश्वरी को माहेश्वरी धर्म के संस्थापक मानकर माहेश्वरी समाज में यह उत्सव 'माहेश्वरी वंशोत्पत्ति दिन' के रुपमें बहुत ही भव्य रूप में और बड़ी ही धूम-धाम से मनाया जाता है. महेश नवमी का यह पर्व मुख्य रूप से भगवान महेश (महादेव) और माता पार्वती की आराधना को समर्पित है.

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माहेश्वरी समाज ने और समाज के नेतृत्व ने समाज की संस्कृति, संस्कृति की प्राचीनता, समाज के इतिहास का क्या महत्व होता है, उन्हें क्यों संजोकर रखा जाता है इसके महत्व को ना समझते हुए इसे कभी महत्व ही नहीं दिया. दुर्भाग्य इसे कभी समझा ही नहीं गया की समाज की विरासत का, इतिहास का, धरोहरों का कोई महत्व भी होता है. इसीलिए आज माहेश्वरी समाज के पास अपनी विरासत, अपनी धरोहर, अपने इतिहास के बारे में बताने के लिए कुछ नहीं है. इसका मतलब यह नहीं है की कुछ है ही नहीं बल्कि इसका मतलब यह है की उनका संरक्षण-संवर्धन करने में ध्यान नहीं दिया गया है, उनके संरक्षण-संवर्धन की जिम्मेदारी को निभाया नहीं गया है. यही कारन है की आज ज्यादातर समाजजनों को यह भी मालूम नहीं है की आज से कितने वर्ष पूर्व हुई है माहेश्वरी वंशोत्पत्ति?


पीढ़ी दर पीढ़ी, परंपरागत रूप से माहेश्वरी समाज में महेश नवमी का पर्व बड़े ही श्रद्धा और आस्था से मनाया जाता रहा है लेकिन ज्यादातर माहेश्वरी समाजजन इसे नहीं जानते की हम महेश नवमी का यह कितवा पर्व मना रहे है? आज से कितने वर्ष पूर्व हुई है माहेश्वरी वंशोत्पत्ति? ज्यादातर माहेश्वरी समाजजन इसे नहीं जानते इसलिए प्रतिवर्ष महेश नवमी तो मनाई जाती रही है, मनाई जाती है लेकिन यह महेश नवमी कीतवी है इसका कोई उल्लेख होते हुए दिखाई नहीं देता है. परिणामतः यह साफ़ साफ़ स्पष्ट नहीं हो पाता है की माहेश्वरी समाज की संस्कृति कितनी प्राचीन है, माहेश्वरी समाज को कितने वर्षों का इतिहास है. आइये, जानते है की आज से कितने वर्ष पूर्व हुई है माहेश्वरी वंशोत्पत्ति?

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माहेश्वरी समाज की वंशोत्पत्ति कैसे हुई इसके बारे में जो कथा परंपरागत रूप से, पीढ़ी दर पीढ़ी प्रचलित है उस कथा (देखें Link > माहेश्वरी वंशोत्पत्ति एवं इतिहास) में आये स्थानों के नाम से, पात्रों के नाम से, उनके कालखंड के माध्यम से, स्थानों की भौगोलिकता से भी माहेश्वरी वंशोत्पत्ति के काल निर्धारण को जाना-समझा जा सकता है.

(1) माहेश्वरी वंशोत्पत्ति कथा में महर्षि पराशर, ऋषि सारस्वत, ऋषि ग्वाला, ऋषि गौतम, ऋषि श्रृंगी, ऋषि दाधीच इन 6 ऋषियों का और उनके नामों का उल्लेख मिलता है जिन्हे भगवान महेशजी ने माहेश्वरी समाज का गुरु बनाया था. महाभारत के ग्रन्थ में भी इन ऋषियों का उल्लेख मिलता है, जैसे की- “महर्षि पराशर ने महाराजा युधिष्ठिर को ‘शिव-महिमा’ के विषय में अपना अनुभव बताया”. महाभारत तथा तत्कालीन ग्रंथों में कई जगहों पर पराशर, भरद्वाज आदि ऋषियों का नामोल्लेख मिलता है जिससे इस बात की पुष्टि होती है की यह ऋषि (माहेश्वरी गुरु) महाभारतकालीन है, और इस सन्दर्भ से इस बात की भी पुष्टि होती है की माहेश्वरी वंशोत्पत्ती महाभारतकाल में हुई है.

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(2) माहेश्वरी वंशोत्पत्ति कथा में खण्डेलपुर राज्य का उल्लेख आता है. महाभारतकाल में लगभग 260 जनपद (राज्य) होने का उल्लेख भारत के प्राचीन इतिहास में मिलता है. इनमें से जो बड़े और मुख्य जनपद थे इन्हे महा-जनपद कहा जाता था. कुरु, मत्स्य, गांधार आदि 16 महा-जनपदों का उल्लेख महाभारत में मिलता है. इनके अलावा जो छोटे जनपद थे, उनमें से कुछ जनपद तो 5 गावों के भी थे तो कुछेक जनपद मात्र एक गांव के भी होने की बात कही गयी है. इससे प्रतीत होता है की माहेश्वरी उत्पत्ति कथा में वर्णित 'खण्डेलपुर' जनपद भी इन जनपदों में से एक रहा होगा. राजस्थान के प्राचीन इतिहास की यह जानकारी की- ‘खंडेला’ राजस्थान स्थित एक प्राचीन स्थान है जो सीकर से 28 मील पर स्थित है, इसका प्राचीन नाम खंडिल्ल और खंडेलपुर था. यह जानकारी खण्डेलपुर के प्राचीनता की और उसके महाभारतकालीन अस्तित्व की पुष्टि करती है.

खंडेला से तीसरी शती ई. का एक अभिलेख प्राप्त हुआ है और यहाँ अनेक प्राचीन मंदिरों के ध्वंसावशेष हैं. “खंडेला सातवीं शती ई. तक शैवमत (शिव अर्थात भगवान महेश को माननेवाले जनसमूह) का एक मुख्य केंद्र था”, यह जानकारी खण्डेलपुर और उसके महाभारतकालीन अस्तित्व की पुष्टि करती है और यंहा पर सातवीं शती तक शिव (महेश) को माननेवाला समाज अर्थात माहेश्वरी समाज के होने की भी पुष्टि करती है. इसी तरह से माहेश्वरी वंशोत्पत्ति कथा में आये (वर्णित) बातों के सन्दर्भ के आधारपर यह स्पष्ट होता है की माहेश्वरी वंशोत्पत्ति द्वापरयुग के महाभारतकाल में हुई है.

(3) माहेश्वरी समाज में माहेश्वरी वंशोत्पत्ति के काल (समय) के बारे में एक श्लोक के द्वारा बताया जाता है, वह श्लोक है-
आसन मघासु मुनय: शासति युधिष्ठिरे नृपते l
सूर्यस्थाने महेशकृपया जाता माहेश्वरी समुत्पत्तिः ll
अर्थ- जब सप्तर्षि मघा नक्षत्र में थे, युधिष्ठिर राजा शासन करता था, सूर्य के स्थान पर अर्थात राजस्थान प्रान्त के लोहार्गल में (लोहार्गल- जहाँ सूर्य अपनी पत्नी छाया के साथ निवास करते है, वह स्थान जो की माहेश्वरीयों का वंशोत्पत्ति स्थान है), भगवान महेशजी की कृपा (वरदान) से; कृपया - कृपा से, माहेश्वरी उत्पत्ति हुई.

उपरोक्त श्लोक से इस तथ्य की पूरी तरह से पुष्टि होती है की माहेश्वरी वंशोत्पत्ति महाभारतकाल में हुई है जब धनुर्धारी अर्जुन के बड़े भाई युधिष्ठिर एक राजा के रूप में शासन कर रहे थे. माहेश्वरी समाज में परंपरागत रूप से, पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही मान्यता के अनुसार माहेश्वरी समाज की वंशोत्पत्ति की जो तिथि और संवत बताया जाता है- "युधिष्ठिर सम्वत 9, जेष्ठ शुक्ल नवमी" से भी इस बात की पुष्टि होती है की माहेश्वरी वंशोत्पत्ति महाभारतकाल (द्वापरयुग) में हुई है.

आसन मघासु मुनय:
मुनया (मुनि) अर्थात आकाशगंगा के सात तारे जिन्हे सप्तर्षि कहा जाता है. ब्रह्मांड में कुल 27 नक्षत्र हैं. सप्तर्षि प्रत्येक नक्षत्र में 100 वर्ष ठहरते हैं. इस तरह 2700 साल में सप्तर्षि एक चक्र पूरा करते हैं. पुरातनकाल में किसी महत्वपूर्ण अथवा बड़ी घटना का समय या काल दर्शाने के लिए 'सप्तर्षि किस नक्षत्र में है या थे' इसका प्रयोग किया जाता था. माहेश्वरी वंशोत्पत्ति के सम्बन्ध में कहा गया है की सप्तर्षि उस समय मघा नक्षत्र में थे. द्वापर युग के उत्तरकाल (जिसे महाभारतकाल कहा जाता है) में भी सप्तर्षि मघा नक्षत्र में थे तो इस तरह से बताया गया है की माहेश्वरी वंशोत्पत्ति द्वापरयुग के उत्तरकाल में अर्थात महाभारतकाल में हुई है. श्लोक के 'शासति युधिष्ठिरे नृपते' इस पद (शब्द समूह) से इस बात की पुष्टि होती है की यह समय महाभारत काल का ही है.

शासति युधिष्ठिरे नृपते
पाण्डुपुत्र युधिष्ठिर का इन्द्रप्रस्थ के राजा के रूप में राज्याभिषेक 17-12-3139 ई.पू. के दिन हुआ, इसी दिन युधिष्ठिर संवत की घोषणा हुई. उसके 5 दिन बाद उत्तरायण माघशुक्ल सप्तमी (रथ सप्तमी) को हुआ, अतः युधिष्ठिर का राज्याभिषेक प्रतिपदा या द्वितीया को था. युधिष्ठिर के राज्यारोहण के पश्चात चैत्र शुक्ल एकम (प्रतिपदा) से 'युधिष्ठिर संवत' आरम्भ हुवा. महाभारत और भागवत के खगोलिय गणना को आधार मान कर विश्वविख्यात डॉ. वेली ने यह निष्कर्ष दिया है कि कलयुग का प्रारम्भ 3102 बी.सी. की रात दो बजकर 20 मिनट 30 सेकण्ड पर हुआ था. यह बात उक्त मान्यता को पुष्ट करती है की भारत का सर्वाधिक प्राचीन युधिष्ठिर संवत की गणना कलियुग से 40 वर्ष पूर्व से की जाती है. युधिष्ठिर संवत भारत का प्राचीन संवत है जो 3142 ई.पू. से आरम्भ होता है. हिजरी संवत, विक्रम संवत, ईसवीसन, वीर निर्वाण संवत (महावीर संवत), शक संवत आदि सभी संवतों से भी अधिक प्राचीन है 'युधिष्ठिर संवत'. माहेश्वरी वंशोत्पत्ति संवत (वर्ष) है- 'युधिष्ठिर संवत 9' अर्थात माहेश्वरी वंशोत्पत्ति ई.पू. 3133 में हुई है. कलियुगाब्द (युगाब्द) में 31 जोड़ने से, वर्तमान विक्रम संवत में (चैत्र शुक्ल प्रतिपदा/गुड़ी पाड़वा/भारतीय नववर्षारंभ से आगे) 3076 अथवा वर्तमान ई.स. में 3133 जोड़ने से माहेश्वरी वंशोत्पत्ति वर्ष आता है. वर्तमान में ई.स. 2018 चल रहा है. वर्तमान ई.स. 2018 + 3133 = 5151 अर्थात माहेश्वरी वंशोत्पत्ति आज से 5151 वर्ष पूर्व हुई है.

आज ई.स. 2018 में युधिष्ठिर संवत 5160 चल रहा है. माहेश्वरी वंशोत्पत्ति युधिष्ठिर संवत 9 में हुई है तो इसके हिसाब से माहेश्वरी वंशोत्पत्ति आज से 5151 वर्ष पूर्व हुई है. अर्थात "महेश नवमी उत्सव 2018" को माहेश्वरी समाज अपना 5151 वा वंशोत्पत्ति दिन मना रहा है.

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माहेश्वरी समाज में युधिष्ठिर सम्वत का है प्रचलन 
समयगणना के मापदंड (कैलेंडर वर्ष) को 'संवत' कहा जाता है. किसी भी राष्ट्र या संस्कृति द्वारा अपनी प्राचीनता एवं विशिष्ठता को स्पष्ट करने के लिए किसी एक विशिष्ठ कालगणना वर्ष/संवत (कैलेंडर) का प्रयोग (use) किया जाता है. आज के आधुनिक समय में सम्पूर्ण विश्व में ईसाइयत का ग्रेगोरीयन कैलेंडर प्रचलित है. इस ग्रेगोरीयन कैलेंडर का वर्ष 1 जनवरी से शुरू होता है. भारत में कालगणना के लिए युधिष्ठिर संवत, युगाब्द संवत्सर, विक्रम संवत्सर, शक संवत (शालिवाहन संवत) आदि भारतीय कैलेंडर का प्रयोग प्रचलन में है. भारतीय त्योंहारों की तिथियां इन्ही भारतीय कैलेंडर से बताई जाती है, नामकरण संस्कार, विवाह आदि के कार्यक्रम पत्रिका अथवा निमंत्रण पत्रिका में भारतीय कैलेंडर के अनुसार तिथि और संवत (कार्यक्रम का दिन और वर्ष) बताने की परंपरा है.

माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति जब हुई तब कालगणना के लिए युधिष्ठिर संवत प्रचलन में था. मान्यता के अनुसार माहेश्वरी वंशोत्पत्ति युधिष्ठिर संवत 9 में ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष के नवमी को हुई है. इसीलिए पुरातन समय में माहेश्वरी समाज में कालगणना के लिए 'युधिष्ठिर संवत' का प्रयोग (use) किया जाता रहा है. वर्तमान समय में देखा जा रहा है की माहेश्वरी समाज में युधिष्ठिर संवत के बजाय विक्रम सम्वत या शक सम्वत का प्रयोग किया जा रहा है. विक्रम या शक सम्वत के प्रयोग में हर्ज नहीं है लेकिन इससे माहेश्वरी समाज की विशिष्ठता और प्राचीनता दृष्टिगत नहीं होती है. जैसे की यदि युधिष्ठिर संवत का प्रयोग किया जाता है तो, वर्तमान समय में चल रहे युधिष्ठिर संवत (वर्ष) में से 9 वर्ष को कम कर दे तो माहेश्वरी वंशोत्पत्ति वर्ष मिल जाता है. आज इ.स. 2018 में युधिष्ठिर संवत 5160 चल रहा है. 5160 में से 9 वर्ष को कम कर दें तो झट से दृष्टिगत होता है की माहेश्वरी वंशोत्पत्ति आज से 5151 वर्ष पूर्व हुई है. इसलिए माहेश्वरी समाज को अपनी पुरातन परंपरा को कायम रखते हुए "युधिष्ठिर संवत" का ही प्रयोग करना चाहिए.

माहेश्वरी संस्कृति की असली पहचान युधिष्ठिर संवत से होती है 
माहेश्वरी समाज की सांस्कृतिक पहचान है युधिष्ठिर संवत. इसलिए माहेश्वरी समाज के महेश नवमी आदि सांस्कृतिक पर्व-उत्सव, बच्चों के नामकरण-विवाह आदि संस्कार, गृहप्रवेश तथा उद्घाटन, वर्धापन आदि सामाजिक व्यापारिक-व्यावसायिक कार्यों के अनुष्ठान, इन सबका दिन बताने के लिए विक्रम संवत, शक संवत या अन्य किसी संवत का नहीं बल्कि युधिष्ठिर संवत का उल्लेख किया जाना चाहिए, कार्यक्रमों के कार्यक्रम पत्रिका, आमंत्रण/निमंत्रण पत्रिका में युधिष्ठिर संवत का ही प्रयोग करना चाहिए. (जैसे की- महेश नवमी उत्सव 2018 मित्ति ज्येष्ठ शु. ९ युधिष्ठिर संवत ५१६० गुरूवार, दि. 21 जून 2018). जैसे "ऋषि पंचमी के दिन रक्षाबंधन, विवाह की विधियों में बाहर के फेरे (बारला फेरा)" माहेश्वरी समाज की विशिष्ठ पहचान को दर्शाता है वैसे ही "युधिष्ठिर संवत" का प्रयोग (use) किया जाना माहेश्वरी समाज की विशिष्ठ पहचान को दर्शाता है. हम आशा करते है की माहेश्वरी समाज में युधिष्ठिर संवत के प्रचलन की खंडित परंपरा की कड़ी को पुनः जोड़ा जायेगा, माहेश्वरी समाज की विशिष्ठ पहचान और गौरव को बढ़ाने लिए समाज के सभी संगठन और समस्त समाजजन सजग बनकर इसमें अपना योगदान देंगे. जय महेश !

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Principle of Maheshwaris and Maheshwari Community | Nation First, Community Next, Self Last | Maheshwari Samaj | Maheshwari Vanshotpatti | Mahesh Navami | Maheshwarism | Maheshwaritva

माहेश्वरीयों के जीवनपद्धति का आधार है माहेश्वरी समाज की उत्पति के समय बने मूल सिद्धांत



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Maheshacharya Yogi Premsukhanand Maheshwari : माहेश्वरी समाज 
एक ऐसा समाज है जिसके मूल सिद्धांतों और गौरवपूर्ण जीवनपद्धति के कारन उसपर ना सिर्फ समाजजन गर्व का अनुभव करते है बल्कि देश और दुनिया भी गर्व का अनुभव करती है. शांतिप्रियता, कर्मशीलता, चारित्र्यशीलता, सदसद्विवेकबुद्धी, सदाचार, ईमानदारी, बिजनेस-व्यवहार में नैतिकता, धर्मप्रेम एवं धार्मिक सहिष्णुता, सामाजिक समरसता, राष्ट्रप्रेम एवं अपने देश के लिए समर्पणभाव, देश और समाज के कानूनों के प्रति आस्था, सद्भावनापूर्ण आचरण और उदारता (केवल समाजबंधुओं के ही नहीं बल्कि देशबांधवों के आपदा-विपदा के समय में भी उदारतापूर्वक सहायता-मदत करने की भावना) इन्ही गुणों और परंपरागत संस्कारों के कारन पूरी दुनिया में माहेश्वरी समाज को विशेष आदर की दृष्टी से देखा जाता है. एकसाथ इन सभी सद्गुणों का होना माहेश्वरीयों को दैवीय (दिव्य) बनाता है.

माहेश्वरीयों के बारे में कहा जाता है की यह समाज अपनी सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक परम्पराओं और विरासत का दृढ़तापूर्वक पालन भी करता है तथा साथ ही किसी भी अन्य समाज के साथ दूध में घुले शक्कर के समान समरस होकर रहता है. लोग अपने रहने के लिए अच्छी, अच्छे माहौलवाली जगह चुनते है लेकिन माहेश्वरी जहाँ रहने जाते है उसे ही अच्छी और अच्छे माहौलवाली जगह बना देते है. 'माहेश्वरी समाज की जीवनपद्धति' अन्य समाजों के लिए एक आदर्श और प्रेरणा मानी जाती है, माहेश्वरीयों को एक विशिष्ठ दर्जा प्रदान करती है. देश-दुनिया में माहेश्वरी समाज को, माहेश्वरीयों को यह विशिष्ठ गौरवपूर्ण दर्जा मिला है "सत्य, प्रेम और न्याय" इन माहेश्वरी समाज के तीन मूल सिद्धांतों के कारन. 3133 ईसापूर्व में जब माहेश्वरी वंशोत्पत्ति हुई उस समय भगवान महेशजी, देवी पार्वती (देवी महेश्वरी) और तत्कालीन गुरुओं ने माहेश्वरी समाज को जो वरदान दिए, जो मार्गदर्शन दिया, जो दिशा दिखाई उसीसे माहेश्वरी वंश (समाज) के मूल सिद्धांत बने है; उसीका माहेश्वरी समाज पीढ़ी दर पीढ़ी कड़ाई से पालन करता आया है उसके कारन. माहेश्वरी समाज के मूल सिद्धांत ही है माहेश्वरी समाज की पहचान. माहेश्वरी समाज के मूल सिद्धांतों का आधार है- "सत्य, प्रेम और न्याय" अर्थात अपने आचरण में- (1) सच्चाई के मार्ग पर तथा सच्चाई के साथ चलना (2) किसी के भी प्रति द्वेष की भावना मन में नहीं रखना और सभी के साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार करना (3) सभी के साथ न्यायोचित, न्यायसंगत व्यवहार/बर्ताव करना.

भगवान महेशजी और देवी पार्वती ने वरदान और आशीर्वाद देकर माहेश्वरी वंश का निर्माण करने के पश्चात महर्षि पराशर, ऋषि सारस्वत, ऋषि ग्वाला, ऋषि गौतम, ऋषि श्रृंगी, ऋषि दाधीच इन छः (6) ऋषियों को माहेश्वरी समाज का गुरु बनाया और इन्हे माहेश्वरी समाज को मार्गदर्शित करने के लिए सौपा. कालांतर में इन गुरुओं ने महर्षि भारद्वाज को भी माहेश्वरी गुरु पद प्रदान किया जिससे माहेश्वरी गुरुओं की संख्या सात हो गई जिन्हे माहेश्वरीयों में आदिगुरु कहा जाता है. माहेश्वरी समाज के इन आदि गुरुओं ने माहेश्वरी समाज को अनुशाषित और मार्गदर्शित करने के लिए जो मार्गदर्शिका बनाई थी उसमें उन्होंने कहा की कोई भी व्यक्ति या समूह अपने जीवन में जिन सिद्धांतों के पथ (मार्ग) पर चलता है, जिन सिद्धांतों के अनुसार आचरण करता है उसे ही धर्म कहते है. माहेश्वरी गुरुओं ने माहेश्वरी वंश (समाज) के आचरण के आधार (बुनियाद) के रूप में सत्य, प्रेम और न्याय इन तीन सिद्धांतों को रखा. उनके अनुसार सत्य, प्रेम और न्याय इन तीन सिद्धांतों के दायरे के अंतर्गत, सृष्टि और स्वयं के हित और विकास में किए जाने वाले सभी कर्म “धर्म” हैं. हर वह कर्म जो औरों के द्वारा हमारे प्रति किया जाना हमें अच्छा लगता हो, वह "धर्म" है (जैसे हम चाहते हैं कि दूसरे हमसे सत्य बोलें तो सत्य-भाषण धर्म है. और हर वह कर्म जो हमें हमारे प्रति किया जाना अच्छा न लगता हो वह अधर्म है जैसे हम नहीं चाहते कि कोर्इ हमारे बारे में बुरा सोचे व हमसे द्वेष रखे तो दूसरों के प्रति बुरा सोचना व दूसरों से द्वेष रखना अधर्म है). माहेश्वरी समाज के आदि गुरुओं द्वारा बनाये गए इन्ही सिद्धांतों का एक रूप है- पहले देश, फिर समाज और अंत में खुद के बारे में सोचना. "सर्वे भवन्तु सुखिनः" यह माहेश्वरी समाज का मूलवाक्य/बोधवाक्य तथा "पहले देश, फिर समाज और अंत में खुद" के बारे में सोचना यह प्राधान्यक्रम माहेश्वरी समाज के मूल सिद्धांत के आधारपर बने माहेश्वरी जीवनदर्शन और माहेश्वरी संस्कृति की महानता को ही दर्शाता है.

गर्व करो अपने माहेश्वरी होने पर !
गर्व से कहो हम माहेश्वरी है ! !
जय महेश ! ! !

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Know why Maha Shivratri is Special for Maheshwaris | Mahashivratri means the Wedding Anniversary of Lord Shiva and Goddess Parvati | Maheshwari Samaj

Mahashivratri means the wedding anniversary of Lord Shiva and Goddess Parvati. According to the traditional belief, at the time of generation of Maheshwari dynasty, Mahesh-Parvati appeared in physical form and gave birth to Maheshwari dynasty due to their boon, hence there is a tradition among Maheshwariyas to worship Mahesh-Parvati in their physical form. Mahesh-Parvati marriage is also a leela performed by Lord Shiva in his physical form. At the time of creation of Maheshwari dynasty, the first work done by Mahesh-Parvati after creation of Maheshwari dynasty was the marriage ceremony of Maheshwariyas. The reason and custom of taking Barla Phera (outside rounds) in the marriage ceremony in Maheshwari community has been going on since then. That is why 'Marriage Sanskar' is considered the most important Sanskar among Maheshwaris and it is called Mangal Karaj. That is why 'Mahashivratri', the wedding day of Mahesh-Parvati, is special for the Maheshwaris and the Maheshwari community celebrates it with great pomp as a great festival.

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महाशिवरात्रि (आम बोलचाल में शिवरात्रि) भगवान शिव (महेश्वर) का एक प्रमुख पर्व है. सनातन धर्म को माननेवालों का एक प्रमुख त्योहार है. सनातन धर्म के सभी लोग इस पर्व को भक्तिभाव से मनाते है लेकिन माहेश्वरी समाज में 'महाशिवरात्रि' को महापर्व के रूप में मनाया जाता है और माहेश्वरीयों के लिए महाशिवरात्रि का विशेष महत्व है.

महाशिवरात्रि का यह दिन भगवान महेश्वर (शिव) के अनेक लीलाओं से सम्बंधित है. पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन सर्वप्रथम शिवलिंग का प्राकट्य हुवा था. शिवलिंग का यह प्रथम प्राकट्य अग्निलिंग के स्वरुप में हुवा था. महाशिवरात्रि के दिन ही भगवान महेश्वर (शिव) ने कालकूट नामक विष को अपने कंठ में रख लिया था जो समुद्र मंथन के समय बाहर आया था. अन्य एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान महेश्वर (शिव) का विवाह पार्वति (देवी महेश्वरी) के साथ जिस दिन हुवा था वह दिन भी महाशिवरात्रि का ही दिन था.

महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है इसे लेकर कई पौराणिक कथाएं और लोक मान्यताएं प्रचलित हैं, फिर भी युवा पीढ़ी को समझाने के लिए एक लाइन में कहा जा सकता है कि आज महेश और पार्वती का मैरिज डे है. महेश-पार्वती के मिलन का पर्व है- महाशिवरात्रि. महेश-पार्वती के विवाह की वर्षगांठ (Marriage Anniversary) है- महाशिवरात्रि.

महेश-पार्वती का विवाह कोई साधारण विवाह नहीं था. प्रेम, समर्पण और तप की परिणति था यह विवाह. दुनिया की बड़ी से बड़ी लव स्टोरी इसके आगे फेल है. जितनी नाटकीयता और उतार-चढ़ाव इस प्रेम कहानी में है, वो दुनिया की सबसे हिट रोमांटिक फिल्म की लव स्टोरी में भी नहीं होगी.

माहेश्वरीयों के लिए क्यों खास है महाशिवरात्रि -
माहेश्वरी समाज के उत्पत्तिकर्ता होने के कारन माहेश्वरीयों के प्रथम आराध्य और इष्टदेव है- महेश-पार्वती. महेश यह भगवान महेश्वर का संक्षिप्त नाम है. महेश (महेश्वर) यह शिव का साकार स्वरुप है. इस ब्रह्माण्ड के उत्पत्तिकर्ता के निराकार स्वरुप का नाम है 'शिव' तथा निराकार स्वरुप का प्रतिक है 'शिवलिंग' और उनके साकार स्वरुप का प्रतिक है विग्रह (शारीरिक आकर को दर्शाती उनकी मूर्ति) जिसे महेश्वर अथवा महादेव के नाम से जाना जाता है. इसे समझना आवश्यक है की इस ब्रह्माण्ड के उत्पत्तिकर्ता के निराकार स्वरुप को 'शिव' कहा जाता है और उनके साकार स्वरुप को 'महेश्वर' कहा जाता है. निराकार स्वरुप को निष्क्रिय स्थिति वाला स्वरुप माना जाता है (क्योंकि निराकार स्वरुप में कोई भी क्रिया की नहीं जा सकती) तो साकार स्वरुप को सक्रीय, क्रियाशील स्वरुप माना जाता है.

परंपरागत मान्यता के अनुसार माहेश्वरी वंशोत्पत्ति के समय महेश-पार्वती ने साकार स्वरूप में प्रकट होकर दर्शन दिए और उनके वरदान से माहेश्वरी वंशोत्पत्ति हुई इसलिए माहेश्वरीयों में महेश-पार्वती की साकार स्वरुप में भक्ति-आराधना करने की परंपरा है. महेश-पार्वती विवाह यह भी शिव के साकार स्वरुप में की गई उनकी लीला है. माहेश्वरी वंशोत्पत्ति के समय ही महेश-पार्वती द्वारा माहेश्वरी वंशोत्पत्ति करने के बाद जो सबसे पहला कार्य किया गया था वो था माहेश्वरीयों का विवाहकार्य (माहेश्वरी समाज में विवाह की विधि में बारला फेरा (बाहर के फेरे) लेने का कारन और रिवाज भी तभी से चला आ रहा है. देखें- Maheshwari - Origin and brief History). इसीलिए माहेश्वरीयों में 'विवाह संस्कार' को सबसे महत्वपूर्ण संस्कार माना जाता है और इसे मंगल कारज कहा जाता है. इसीलिए महेश-पार्वती के विवाह का दिन 'महाशिवरात्रि' माहेश्वरीयों के लिए खास है और माहेश्वरी समाज इसे महापर्व के रूप में बड़े धूमधाम से से मनाता है.


माहेश्वरी समाज में 'महाशिवरात्रि' महेश-पार्वती के प्रति सम्पूर्ण समर्पण और आराधना का पर्व है. इस दिन माहेश्वरीयों के हर घर-परिवार में महेश-पार्वती की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. अभिषेक किया जाता है. महेशाष्टक का पाठ किया जाता है. महेशजी के अष्टाक्षर मंत्र "ॐ नमो महेश्वराय" का जाप किया जाता है. महेशजी की आरती करके उन्हें मिष्ठानों का भोग लगाया जाता है. महाशिवरात्रि के दिन रात्रि में आधी रात तक जागकर भजन किये जाते है. आम तौर पर सनातन धर्म को माननेवाले महाशिवरात्रि के दिन उपवास रखते है लेकिन माहेश्वरीयों में महाशिवरात्रि का उपवास रखने की परंपरा नहीं है. अनेको स्थानों पर महेश-पार्वती के विवाह का आयोजन किया जाता है, महेशजी की बारात (आम बोलचाल में इसे शिव बारात कहा जाता है) नीकाली जाती है.

माहेश्वरीयों की परंपरागत मान्यता के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन महेश-पार्वती की भक्ति-आराधना से साधक के सभी दुखों, पीड़ाओं का अंत तो होता ही है साथ ही सभी मनोकामनाएं भी पूर्ण होती है, धन-धान्य, सुख-सौभाग्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है. कुवांरे लड़कों और लड़कियों को अनुकूल मनचाहा जीवनसाथी मिलता है. वैवाहिक जीवन में पति-पत्नी में आजीवन प्रेममय सम्बन्ध बने रहते है. भक्तों पर महेश परिवार की अपार कृपा बरसती है.

अनंतकोटी ब्रह्मांडनायक देवाधिदेव योगिराज परब्रह्म 
भक्तप्रतिपालक पार्वतीपतये श्री महेश भगवान की जय

आप सभी को महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं ! महेश-पार्वती की कृपा आप सभी पर सदैव बनी रहे. आप सभी का कल्याण हो, मंगल हो !






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माहेश्वरी लोग सदैव ध्यान में रखें इस बात को | This is the meaning of celebrating Mahesh Navami | Maheshwari is Not a Name it is a Brand –Maheshacharya Premsukhanand Maheshwari

Only good "sanskars" of Maheshwaris make Maheshwaris great and give them supreme success in life. Maheshwariyas are called the Seth (Shreshth) because they possess good values ​​and good qualities. “Maheshwari” is not just a word or name but a prestigious “brand” and symbol of virtue, service, generosity, honesty, hard work and reliability. On the occasion of "Mahesh Navami", the foundation day of Maheshwari community, the people of Maheshwari have to be resolved to maintain their heritage and specialty and pass it on to the next generation. This is the real meaning of celebrating Mahesh Navami !

3133 ईसा पूर्व में अर्थात द्वापर युग के उत्तरार्ध में, महाभारतकाल में देवाधिदेव महेशजी और देवी महेश्वरी (पार्वती) के वरदान से माहेश्वरी वंश (माहेश्वरी समाज) की उत्पत्ति हुई. इसे ठीक से समझे तो कलियुग के ठीक पहले माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई है. मित्रों, कलियुग अनीति, अनाचार, अन्याय की प्रधानतावाला अर्थात अधर्म की प्रधानतावाला युग माना जाता है. चराचर जगत के निर्माणकर्ता, पालनहार और संहारकर्ता घोर अनाचार और अनीतिवाले कलियुग में धर्म की हानि रोकने के लिए, अधर्म के कारन होनेवाले विश्व के विनाश को बचाने के लिये भगवान् महेशजी और देवी पार्वती द्वारा दैवीय अर्थात महा ईश्वरी (माहेश्वरी) वंश की उत्पत्ति की गई है; सदाचारी, न्यायपूर्ण, नीतिपूर्ण जीवन जीने का आदर्श लोगों के सामने रहे इसीलिए माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति की गई है. लोगों के सामने एक आदर्श और धर्माधिष्ठित जीवनपद्धति को रखने के लिए माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई है.

माहेश्वरी वंशोत्पत्ति के समय भगवान महेशजी ने कहा था की- "तुम दिव्य गुणों को धारण करनेवाले होंगे. द्यूत, मद्यपान और परस्त्रीगमन इन त्रिदोषों से मुक्त होंगे. जगत में धन-सम्पदा के धनि के रूप में तुम्हारी पहचान होगी. धनि और दानी के नाम से तुम्हारी ख्याति होगी. श्रेष्ठ कहलावोगे" (*आगे चलकर श्रेष्ठ शब्द का अपभ्रंश होकर 'सेठ' कहा जाने लगा. अर्थात अधिक धन-सम्पदा के स्वामी होने के कारन नहीं बल्कि इन दिव्य गुणों को धारण करनेवाले होने के कारन माहेश्वरीयों को श्रेष्ठ/सेठ कहा जाता है). भगवान महेशजी का माहेश्वरी समाज को, माहेश्वरीयों को दिया गया यह वरदान और आदेश भी है की माहेश्वरी द्यूत अर्थात किसी भी तरह के जुआ/जुगार खेलने से, मद्यपान अर्थात किसी भी तरह के नशीले पदार्थ के सेवन से और परस्त्रीगमन से मुक्त रहेंगे, वे इन तीन दोषों (बुराइयों) में लिप्त नहीं होंगे. इसी के कारन 'माहेश्वरी' दिव्य गुणों को धारण करनेवाले कहलाते है, माहेश्वरी (महा+ईश्वरी) अर्थात दैवीय/दिव्य कहलाते है, श्रेष्ठ कहलाते है. कलियुग में माहेश्वरीयों को 'श्रेष्ठ' माना जाता है, श्रेष्ठ (सेठ) कहा जाता है (देखें- Maheshwari - Origin and brief History). आज के समय में ज्यादातर समाजबंधुओं को, युवाओं को, नई पीढ़ी को माहेश्वरी वंशोत्पत्ति कब हुई, कहाँ हुई, कैसे हुई, क्यों हुई, तब क्या क्या हुवा इसकी तथा माहेश्वरी समाज के इतिहास की समुचित जानकारी ही नहीं है; परिणामतः उन्हें हम माहेश्वरीयों की उत्पत्ति किस महान उद्द्येश्य से हुई है इसका बोध ही नहीं है. हमें लगता है की "माहेश्वरी वंशोत्पत्ति एवं इतिहास" की जानकारी समाज के हरएक घटक तक पहुँचाने के लिए माहेश्वरी समाज के लिए कार्य करनेवाले संगठनों को कोई प्रचार अभियान चलाना चाहिए. सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा समय समयपर इसको समाज के सामने रखा जाना चाहिए.

भगवान् महेशजी द्वारा हम माहेश्वरीयों को, माहेश्वरी समाज को सौपा गया यह एक बहुत ही गौरवपूर्ण दायित्व है. लेकिन आज हम हमारे इस गौरव को, हमारे दायित्व को, हमारी महत्ता को भूलते जा रहे है. आज स्थिति ऐसी बनती जा रही है की- एक ज़माने में आम लोगबाग माहेश्वरी समाज का, उनके जीवनपद्धति का आदर्श सामने रखकर, प्रेरणा लेकर अपने खान-पान, रहन-सहन, आचार-विचार-व्यवहार और जीवनपद्धति में बदलाव लाते थे. आम लोगबाग माहेश्वरीयों जैसे जीवन जीने की कोशिश करते थे लेकिन आज इसका उलटा होता दिखाई दे रहा है. हमें लगता है समाज को, समाज में के बुद्धिजीवियों को, प्रबुद्ध समाजबंधुओं को, समाज के सामाजिक नेतृत्व को, हम सबको इसपर जरूर सोचना चाहिए, गंभीरता से सोचना चाहिए. हम सभी को इस बात को सदैव याद रखना चाहिए की भगवान् महेशजी और देवी पार्वती द्वारा माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति किस उद्देश्य से हुई थी. क्या हम हमें मिले उस अद्वितीय गौरव को कायम रख पा रहे है? भगवान् महेशजी और देवी पार्वती द्वारा हमें मिले दायित्व को निभा रहे है? मित्रों, समाजबंधुओं, माताओ और बहनो, ध्यान रहे की "माहेश्वरी" सिर्फ एक नाम नहीं है बल्कि एक ब्रांड है; और समाज का हरएक व्यक्ति, हरएक माहेश्वरी इस ब्रांड का "ब्रांड एम्बेसडर" है.

माहेश्वरीयों के अच्छे "संस्कार" ही माहेश्वरीयों को महान बनाते है, जीवन में सर्वोच्च सफलता दिलाते है। अच्छे संस्कारों, अच्छे गुणों को धारण करनेवाले होने के कारन ही माहेश्वरीयों को श्रेष्ठ (सेठ) कहा जाता है. "माहेश्वरी" सिर्फ एक शब्द या नाम नहीं है बल्कि सदाचार का, सेवा का, उदारता का, ईमानदारी का, मेहनत का, विश्वसनीयता का एक प्रतिष्ठित "ब्रांड" है, सिम्बॉल है.

माहेश्वरी समाज के स्थापना दिन "महेश नवमी" के अवसर पर माहेश्वरीजनों को अपने इसी विरासत और विशेषता को कायम रखने और अगली पीढ़ी में पहुँचाने के लिए संकल्पबद्ध होना होता है. यही है महेश नवमी को मनाने का वास्तविक मतलब !!!

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