धनतेरस का रहस्य जो आपसे छुपाया गया है | Dhanteras | Dhantrayodashi | Lord Dhanvantari | Diwali Parv | Date | Significance | आरोग्य रूपी धन से सम्बंधित है धनतेरस, ना की सोना-चांदी-हिरे-जवारात से

In fact, Dhanteras is not related to gold, silver, diamonds and jewels but to wealth in the form of health


You are worshiping Dhanteras wrong. You are being fooled because Actually Dhanteras is related to wealth in the form of health, not wealth in the form of gold, silver, diamonds and jewellery. Dhanteras is made of two words - Dhan which means Lord Dhanvantari, and Teras which means Trayodashi. Dhanvantari, the god of health, appeared on Kartik Krishna Trayodashi date itself, hence this date is known as Dhanteras or Dhantrayodashi. In fact, Dhanteras means Dhanvantari Teras, Dhanvantari's manifest day (Bhagwan Dhanvantari ka prakaty diwas). Lord Dhanvantari is the deity of health, longevity and glory. Dhanteras is related to wealth in the form of health, not wealth in the form of gold, silver, diamonds and jewellery. To get the blessings of Lakshmiji, the goddess of wealth, one needs health and long life, that is why Dhanteras festival is celebrated 2 days before Mahalakshmi Pujan with wishes for health and longevity. That is why the Government of India has decided to celebrate the festival of Dhanteras as National Ayurveda Day i.e. 'Indian Health Day'. Just as World Health Day is on 7th April, similarly Indian Health Day is - the day of "Dhanteras". Do you understand?

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Happy Dhanteras to all. धनतेरस की शुभकामनायें... भगवान धन्वन्तरि आपको निरंतर उत्तम स्वास्थ्य और दीर्घायु प्रदान करे यही मंगलकामनाएं !

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कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन ही आरोग्य के देवता धन्वन्तरि का प्राकट्य हुआ था इसलिए इस तिथि को धनतेरस या धनत्रयोदशी के नाम से जाना जाता है. धनतेरस अर्थात धन्वन्तरि तेरस. धन्वन्तरि से धन और उनके प्राकट्य का दिन 'तेरस' मिलकर "धनतेरस" शब्द बना है. आरोग्य रूपी धन से सम्बंधित है धनतेरस, ना की सोना-चांदी-हिरे-जवारात रूपी धन से.

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जिस प्रकार देवी लक्ष्मी सागर मंथन से उत्पन्न हुई थीं, उसी प्रकार आयुर्वेद के देवता भगवान धन्वंतरी भी अमृत कलश के साथ सागर मंथन से उत्पन्न हुए हैं. धन्वन्तरि आरोग्य, सेहत, स्वास्थ्य, आयु और तेज के आराध्य देवता हैं (Lord Dhanvantari is God of Health). भगवान धन्वन्तरी को देवताओं के वैद्य और चिकित्सा के देवता भी बताया गया है.

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भारत देश में दीवाली, नवरात्रि, विजयादशमी, धनतेरस आदि धार्मिक त्योंहार बड़े ही उत्साह के साथ मनाये जाते है. इन त्योंहारों पर सभी लोग सोना, चांदी आदि धन-वैभव अपने घरों में लाते है लेकिन अपनी सेहत (स्वास्थ्य) पर ध्यान देना भूल जाते है; लेकिन धन की देवी लक्ष्मीजी की कृपा प्राप्त करने के लिए स्‍वास्‍थ्‍य और लम्बी आयु भी चाहिए इसीलिए महालक्ष्मी पूजन से 2 दिन पहले आरोग्‍य व दीर्घायु की कामना के साथ धनतेरस पर्व मनाया जाता है, आरोग्यदेव भगवान धन्वन्तरि की पूजा की जाती है. यह बात भारतीय जीवनदर्शन की परिपूर्णता और मानवी जीवन के लिए किये गए यथार्थ मार्गदर्शन को दर्शाती है. शास्त्रों में जीवन के 7 प्रमुख सुखों के बारे में बताया गया है, प्राधान्यक्रम में पहले स्थान पर रखा है स्वास्थ्य को- पहला सुख निरोगी काया. स्वास्थ्य को प्रथम स्थान पर रखने का कारण भी यही है कि यदि शरीर स्वस्थ न हो तो अन्य सब सुख व्यर्थ है. स्वस्थ शरीर से ही धन का संग्रहण, संरक्षण, और उपभोग तथा दान सम्भव है. Health is first Wealth, आरोग्यम धन सम्पदा (स्वास्थ्य ही धन और संपत्ति है) यह है धनतेरस के दिन की 'धन' की परिभाषा. इसीलिए जैसे 7 अप्रैल को World Health Day होता है वैसे ही भारतीय स्वास्थ्य दिवस (The Indian Health Day) है- "धनतेरस" का दिन (इसलिए ही धनतेरस के त्यौहार को भारत सरकार ने राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप से अर्थात 'भारतीय स्वास्थ्य दिवस' के रूप में मनाने का निर्णय लिया है). 

अपितु दीपावली पर्व का यह पहला दिन 'धनतेरस' स्वास्थ्य के प्रति समर्पित दिन है, स्वास्थ्य पे प्रति सजगता का दिन है लेकिन "धनतेरस' इस शब्द में "धन" इस शब्द का प्रयोग होने से गलतफहमी के चलते तथा कुछ लोगों द्वारा अपने स्वार्थ को साधने के लिए धनतेरस में प्रयोग हुये शब्द 'धन' गलत अर्थ में प्रचारित हुवा है/प्रचारित किया है. यह कुछ लोगों द्वारा किये गए सामूहिक प्रचारतंत्र (मार्केटिंग) का परिणाम है की जनसामान्य, लोग धनतेरस के दिन को सोने-चांदी के गहने/अलंकार खरीदने का शुभ दिन समझने लगे है और इसीलिए इस दिन धन अर्थात रूपया-पैसा, सोने-चांदी के गहने/अलंकार आदि खरीदते है तथा कुबेर और रूपया-पैसा, सोने-चांदी के गहनों की पूजा करते है. वस्तुतः रूपया-पैसा-सोना-चांदी-हीरे-जवारात रूपी धन की पूजा के लिए महालक्ष्मी-पूजन (दीपावली) का दिन है, धनतेरस का नहीं. 

भारतवर्ष की संस्कृति और भारतीय चिकित्साशास्त्र में स्वास्थ्य को आहार (भोजन) से जोड़ा गया है इसलिए धनतेरस के दिन स्वास्थ्य के अनुकूल ऐसे रसोई के बर्तन खरीदने की परंपरा है. पीतल धातु भगवान धन्वन्तरि को बहुत प्रिय है, इसलिए धनतेरस के दिन पीतल की चीज़ों का खरीदना बहुत शुभ माना जाता है. सफाई के लिए नई झाडू और सूपड़ा/सुपली खरीदकर उसकी पूजा की जाती है. इस दिन रसोईघर की साफसफाई की जाती है, रसोई में प्रयोग किये जानेवाले प्रमुख बर्तनो (जैसे की चकला/चकलुटा- यह लकड़ी का बना होता है जिसपर चपाती और रोटी बेली जाती है, बेलन, तवा, कढ़ई आदि) और चूल्हे की (वर्तमान समय में गॅस को ही चूल्हा समझे) पूजा की जाती है. ऐसी मान्यता है कि धनवंतरी भगवान संध्या काल में प्रकट हुए थे अतः संध्या के समय पूजन किया जाना उत्तम माना जाता है. पूजन में आयुर्वैदिक घरेलु ओषधियाँ जैसे आंवला, हरड़, हल्दी आदि अवश्य रखें. जल से भरे घड़े में हरितकी (हरड़), सुपारी, हल्दी, दक्षिणा, लौंग का जोड़ा आदि वस्तुएं डाल कर कलश स्थापना करें. भगवान धन्वंतरि की पूजा में सात धान्यों की पूजा होती है. जैसे कि गेहूं, उडद, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर. इन सब के साथ ही पूजा में विशेष रूप से स्वर्णपुष्पा के पुष्प से माँ दुर्गा का पूजन करना बहुत ही लाभकारी होता है. इस दिन भगवान धन्वंतरि के साथ ही माँ दुर्गा के पूजा का विशेष महत्व है. धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि को भोग में श्वेत मिष्ठान्न का भोग लगाना चाहिए. आयुर्वेद के देवता धन्वन्तरि के साथ ही योग के देवता भगवान महेश (शिव) और बल (स्वास्थ/शक्ति) की देवता महाकाली (देवी दुर्गा) का पूजन भी किया जाता है. धनतेरस पर हाथी की पूजा करने का भी विधान है. धनतेरस की संध्या (शाम) को यम देवता के नाम पर दक्षिण दिशा में एक दीप जलाकर रखा जाता है.

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धनतेरस के संदर्भ में एक लोक कथा प्रचलित है कि एक बार यमदूतों ने यमराज से पूछा कि मनुष्य प्राणी को अकाल मृत्यु से बचने का कोई उपाय है क्या? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए यम देवता ने कहा कि जो प्राणी धनतेरस की संध्या (शाम) को यम के नाम पर दक्षिण दिशा में दीया जलाकर रखता है उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती है. इस मान्यता के अनुसार धनतेरस की शाम को आँगन मे दक्षिण दिशा में यम देवता के नाम पर दीप जलाकर रखने की परंपरा है. परिवार के किसी भी सदस्य की असामयिक/अकाल मृत्यु से बचने के लिए मृत्यु के देवता यमराज के लिए घर के बाहर दीपक जलाया जाता है जिसे 'यम दीपम' के नाम से जाना जाता है और इस धार्मिक संस्कार (विधि) को धनतेरस के दिन किया जाता है.

धनतेरस का पर्व स्वास्थ्य के प्रति समर्पित दिन होने के कारन इस दिन स्वास्थ्य साधनों के उपकरण (Health Instrument, Exercise & Fitness Instrument) खरीदने चाहिए तथा इनकी पूजा की जानी चाहिए; स्वास्थ्य से सम्बंधित सेमीनार, कार्यशाला, चिकित्सा शिबिर (हेल्थ कैंप), गोष्टी आदि का आयोजन किया जाना चाहिए, यही धनतेरस की मूल भावना के अनुरूप, संयुक्तिक और औचित्यपूर्ण है. हमें यह समझने की जरुरत है की- धनतेरस के दिन को स्वास्थ्य के दिन के रूप में भूलकर/भुलाकर इसके कुबेर पूजन और सोने-चांदी के गहने/अलंकार खरीदने के दिन के रूप में प्रचारित होने से ना केवल इस दिन की मूलभावना, मूल उद्देश्य समाप्त होता है बल्कि भारतीय संस्कृति और जीवनदर्शन को दर्शानेवाले इस पर्व की सार्थकता और औचित्य ही समाप्त हो जाता है. यह भारतीय संस्कृति की बहुत बड़ी हानि है.

धनतेरस का सन्देश यही है की इस दिन अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग होना है, जीवन में स्वास्थ्य के महत्त्व को समझना है, आनेवाले समय में अपने स्वास्थ्य को सुनिश्चित करना है, अपने बेहतर स्वास्थ्य का नियोजन करना है और भगवान धन्वन्तरि से प्रार्थना करनी है कि वे समस्त जगत को निरोग कर मानव समाज को दीर्घायु प्रदान करें.

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Know The True Meaning Of Dhanteras Festival | Dhanteras means Indian Health Day / National Ayurveda Day | Dhanteras | Lord Dhanvantari | Dhantrayodashi | Diwali festival | Date | Significance

Dhan which means Lord Dhanvantari, the god of Health and Teras which means Trayodashi


Maheshacharya Premsukhanand Maheshwari: The celebration of five-day Diwali festival (Deepawali Parv), begins with Dhanteras. The word Dhanteras is made of two words - Dhan which means Lord Dhanvantari, and Teras which means 13th day, Trayodashi. Dhanvantari, the god of health, appeared on Kartik Krishna Trayodashi date itself, hence this date is known as Dhanteras or Dhantrayodashi. Dhanteras means Dhanvantari Teras, Dhanvantari's manifest day (Bhagwan Dhanvantari ka prakaty diwas). The word “Dhanteras” is formed by combining wealth from Dhanvantari and the day of its appearance ‘Teras’. Lord Dhanvantari is the deity of health, longevity and glory. Dhanteras is related to wealth in the form of health, not wealth in the form of gold, silver, diamonds and jewellery. To get the blessings of Lakshmiji, the goddess of wealth, one needs health and long life, that is why Dhanteras festival is celebrated 2 days before Mahalakshmi Pujan with wishes for health and longevity.

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धनतेरस (भारतीय स्वास्थ्य दिवस / राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस) की
हार्दिक शुभकामनाएं... Happy Dhanteras to You & All


कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी तिथि को ही आरोग्य के देवता धन्वन्तरि का प्राकट्य हुआ था इसलिए इस तिथि को धनतेरस या धनत्रयोदशी के नाम से जाना जाता है. धनतेरस अर्थात धन्वन्तरि तेरस. धन्वन्तरि से धन और उनके प्राकट्य का दिन 'तेरस' मिलकर "धनतेरस" शब्द बना है. भगवान धन्वन्तरि आरोग्य, सेहत, स्वास्थ्य, आयु और तेज के आराध्य देवता हैं (Lord Dhanvantari is God of Health). आरोग्य रूपी धन से सम्बंधित है धनतेरस, ना की सोना-चांदी-हिरे-जवारात रूपी धन से.

सही बात की जानकारी नहीं होने से तथा 'धनतेरस' में प्रयोग हुये शब्द 'धन' गलत अर्थ में प्रचारित हुवा है/प्रचारित किया है, गलत अर्थ में प्रचारित किया जा रहा है. लोग धनतेरस के दिन को सोने-चांदी के गहने/अलंकार खरीदने का शुभ दिन समझने लगे है और इसीलिए इस दिन धन अर्थात रूपया-पैसा, सोने-चांदी के गहने/अलंकार आदि खरीदते है तथा कुबेर और रूपया-पैसा, सोने-चांदी के गहनों की पूजा करते है. वस्तुतः रूपया-पैसा-सोना-चांदी-हीरे-जवारात रूपी धन खरीदने या पूजा करने के लिए महालक्ष्मी-पूजन (दीपावली) का दिन है, धनतेरस का नहीं.

स्वस्थ शरीर से ही धन का संग्रहण, संरक्षण, और उपभोग तथा दान सम्भव है. Health is first Wealth, आरोग्यम धन सम्पदा (स्वास्थ्य ही धन और संपत्ति है) यह है धनतेरस के दिन की 'धन' की परिभाषा. इसीलिए जैसे 7 अप्रैल को World Health Day होता है वैसे ही भारतीय स्वास्थ्य दिवस (The Indian Health Day) है- "धनतेरस" का दिन (इसलिए ही धनतेरस के त्यौहार को भारत सरकार ने राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप से अर्थात 'भारतीय स्वास्थ्य दिवस' के रूप में मनाने का निर्णय लिया है).

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धन की देवी लक्ष्मीजी की कृपा प्राप्त करने के लिए स्‍वास्‍थ्‍य और लम्बी आयु भी चाहिए इसीलिए महालक्ष्मी पूजन से 2 दिन पहले आरोग्‍य व दीर्घायु की कामना के साथ धनतेरस पर्व मनाया जाता है, आरोग्यदेव भगवान धन्वन्तरि की पूजा की जाती है. यह बात भारतीय जीवनदर्शन की परिपूर्णता और मानवी जीवन के लिए किये गए यथार्थ मार्गदर्शन को दर्शाती है. शास्त्रों में जीवन के 7 प्रमुख सुखों के बारे में बताया गया है, प्राधान्यक्रम में पहले स्थान पर रखा है स्वास्थ्य को- पहला सुख निरोगी काया. स्वास्थ्य को प्रथम स्थान पर रखने का कारण भी यही है कि यदि शरीर स्वस्थ न हो तो अन्य सब सुख व्यर्थ है. इसीलिए दीपावली पर्व का यह पहला दिन 'धनतेरस' स्वास्थ्य के प्रति समर्पित दिन है. स्वास्थ्य पे प्रति सजगता का दिन है- धनतेरस.

जिस प्रकार देवी लक्ष्मी सागर मंथन से उत्पन्न हुई थीं, उसी प्रकार आयुर्वेद के देवता भगवान धन्वंतरी भी अमृत कलश के साथ सागर मंथन से उत्पन्न हुए हैं. भगवान धन्वन्तरी को देवताओं के वैद्य और चिकित्सा के देवता भी बताया गया है. चिकित्‍सकों (डॉक्टर्स) और वैद्यों के लिए इस दिन का विशेष महत्‍व है. दीपावली के पांच दिवसीय पर्व का पहला दिन है- धनतेरस. इसी दिन से दीपावली पर्व की शुरुवात होती है.

भारतवर्ष की संस्कृति और भारतीय चिकित्साशास्त्र में स्वास्थ्य को आहार (भोजन) से जोड़ा गया है इसलिए धनतेरस के दिन स्वास्थ्य के अनुकूल ऐसे रसोई के बर्तन खरीदने की परंपरा है. पीतल धातु भगवान धन्वन्तरि को बहुत प्रिय है, इसलिए धनतेरस के दिन पीतल की चीज़ों का खरीदना बहुत शुभ माना जाता है. सफाई के लिए नई झाडू और सूपड़ा/सुपली खरीदकर उसकी पूजा की जाती है. इस दिन रसोईघर की साफसफाई की जाती है, रसोई में प्रयोग किये जानेवाले प्रमुख बर्तनो (जैसे की चकला/चकलुटा- यह लकड़ी का बना होता है जिसपर चपाती और रोटी बेली जाती है, बेलन, तवा, कढ़ई आदि) और चूल्हे की (वर्तमान समय में गॅस को ही चूल्हा समझे) पूजा की जाती है. ऐसी मान्यता है कि धनवंतरी भगवान संध्या काल में प्रकट हुए थे अतः संध्या के समय पूजन किया जाना उत्तम माना जाता है. पूजन में आयुर्वैदिक घरेलु ओषधियाँ जैसे आंवला, हरड़, हल्दी आदि अवश्य रखें. जल से भरे घड़े में हरितकी (हरड़), सुपारी, हल्दी, तुलसी, दक्षिणा, लौंग का जोड़ा आदि वस्तुएं डाल कर कलश स्थापना करें. भगवान धन्वंतरि की पूजा में सात धान्यों की पूजा होती है. जैसे कि गेहूं, उडद, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर. इन सब के साथ ही पूजा में विशेष रूप से स्वर्णपुष्पा के पुष्प से माँ दुर्गा का पूजन करना बहुत ही लाभकारी होता है. इस दिन भगवान धन्वंतरि के साथ ही माँ दुर्गा के पूजा का विशेष महत्व है. धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि को भोग में श्वेत मिष्ठान्न का भोग लगाना चाहिए. आयुर्वेद के देवता धन्वन्तरि के साथ ही योग के देवता भगवान महेश (शिव) और बल (स्वास्थ/शक्ति) की देवता महाकाली (देवी दुर्गा) का पूजन भी किया जाता है. धनतेरस पर हाथी की पूजा करने का भी विधान है. धनतेरस की संध्या (शाम) को यम देवता के नाम पर दक्षिण दिशा में एक दीप जलाकर रखा जाता है.

धनतेरस के संदर्भ में एक लोक कथा प्रचलित है कि एक बार यमदूतों ने यमराज से पूछा कि मनुष्य प्राणी को अकाल मृत्यु से बचने का कोई उपाय है क्या? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए यम देवता ने कहा कि जो प्राणी धनतेरस की संध्या (शाम) को यम के नाम पर दक्षिण दिशा में दीया जलाकर रखता है उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती है. इस मान्यता के अनुसार धनतेरस की शाम को आँगन मे दक्षिण दिशा में यम देवता के नाम पर दीप जलाकर रखने की परंपरा है. परिवार के किसी भी सदस्य की असामयिक/अकाल मृत्यु से बचने के लिए मृत्यु के देवता यमराज के लिए घर के बाहर दीपक जलाया जाता है जिसे 'यम दीपम' के नाम से जाना जाता है और इस धार्मिक संस्कार (विधि) को धनतेरस के दिन किया जाता है.

धनतेरस के दिन हाथी की पूजा -

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माहेश्वरी संप्रदाय (समाज) की धार्मिक परंपरा के अनुसार धनतेरस के दिन हाथी की पूजा करने का विधान है. माहेश्वरी धार्मिक मान्यता के अनुसार हाथी को स्वास्थ्य, शक्ति और ऐश्वर्य प्रदाता के रूप में 'गजान्तलक्ष्मी' कहा जाता है. हाथी के पर्याय के रूप में, जिसका सामने का दाहिना पैर आगे हो ऐसे सोने, चांदी, तांबे, पीतल, कांसे या लाल मिट्टी के हाथी को पूजा जाता है. चांदी अथवा पीतल के हाथी को पूजाघर में, हाथी का मुख उत्तर दिशा की ओर करकर रखा जाता है तथा उसकी नित्य पूजा की जाती है.

कहते हैं कि‍ एक बार महाभारत काल में धनतेरस के दिन पूरे हस्‍त‍िनापुर में गजलक्ष्मी पर्व मनाया गया. इस उत्‍सव पर हस्‍तिनापुर की महारानी गांधारी ने पूरे नगर को शाम‍िल होने के ल‍िए आमंत्रित क‍िया था लेक‍िन कुंती को नहीं बुलाया. व‍िधान के अनुसार इसमें मिट्टी के हाथी की पूजा होनी थी. ऐसे में गांधारी के 100 कौरव पुत्रों ने म‍िट्टी लाकर महल के बीच व‍िशालकाय हाथी बनाया, जि‍ससे कि‍ सभी लोग उसकी पूजा कर सके. ऐसे में पूजा में हस्‍तिनापुर की महारानी गांधारी द्वारा न बुलाए जाने से कुंती काफी दुखी थी. ज‍िससे उनके बेटे अर्जुन से मां का दुख देखा नहीं गया. उन्‍होंने मां से कहा क‍ि वह पूजा की तैयारी करें और वह म‍िट्टी का नहीं बल्‍क‍ि जीव‍ित हाथी लेकर आते हैं. फिर अर्जुन ने देवताओं के राजा इंद्र से ऐरावत हाथी को पूजने हेतु भेजने का आवाहन किया. अर्जुन के आवाहन पर इंद्र ने ऐरावत हाथी को अर्जुन के पास भेजा. अर्जुन ने हाथी को मां कुंती के सामने खड़ा कर द‍िया और कहा कि तुम इसकी पूजा करो. कुंती को ऐरावत हाथी की पूजा करते देख गांधारी को अपनी गलती का अहसास हुआ. उन्‍होंने कुंती से क्षमा मांगी. इसके बाद से ही गजलक्ष्‍मी के रूपमें हाथी की पूजा शुरू हो गई. तभी से धनतेरस के दिन सजे-धजे सोने, चांदी, तांबे, पीतल, कांसे या लाल मिट्टी के हाथी को पूजने की परंपरा आरंभ हुई. महालक्ष्मी के गजलक्ष्मी स्वरुप को हाथी के रूपमें पूजा जाने लगा.

गजलक्ष्मी- महालक्ष्मी के आठ स्वरुप है जिनके अधीन है अष्टसम्पदायें, इन्हे अष्टलक्ष्मी के नाम से जाना जाता है. इन्ही अष्टलक्ष्मीयों में से एक है- गजलक्ष्मी. इन्हीं की कृपा से बल और आरोग्य के साथ साथ धन-वैभव-समृद्धि के साथ ही राजपद का आशीर्वाद प्राप्त होता है; इसीलिए गजलक्ष्मी देवी को राजलक्ष्मी के नाम से भी जाना जाता है. गज (हाथी) को वर्षा करने वाले मेघों तथा उर्वरता का भी प्रतीक माना जाता है इसलिए गजलक्ष्मी उर्वरता तथा समृद्धि की देवी भी हैं. इसी गजलक्ष्मी को हाथी के रूपमें गजान्तलक्ष्मी के नाम से पूजा जाता है.

धनतेरस का पर्व स्वास्थ्य के प्रति समर्पित दिन होने के कारन इस दिन स्वास्थ्य साधनों के उपकरण (Health Instrument, Exercise & Fitness Instrument) खरीदने चाहिए तथा इनकी पूजा की जानी चाहिए; स्वास्थ्य से सम्बंधित सेमीनार, कार्यशाला, चिकित्सा शिबिर (हेल्थ कैंप), गोष्टी आदि का आयोजन किया जाना चाहिए, यही धनतेरस की मूल भावना के अनुरूप, संयुक्तिक और औचित्यपूर्ण है. हमें यह समझने की जरुरत है की- धनतेरस के दिन को स्वास्थ्य के दिन के रूप में भूलकर/भुलाकर इसके कुबेर पूजन और सोने-चांदी के गहने/अलंकार खरीदने के दिन के रूप में प्रचारित होने से ना केवल इस दिन की मूलभावना, मूल उद्देश्य समाप्त होता है बल्कि भारतीय संस्कृति और जीवनदर्शन को दर्शानेवाले इस पर्व की सार्थकता और औचित्य ही समाप्त हो जाता है. यह भारतीय संस्कृति की बहुत बड़ी हानि है.

धनतेरस का सन्देश यही है की इस दिन अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग होना है, जीवन में स्वास्थ्य के महत्‍व को समझना है, आनेवाले समय में अपने स्वास्थ्य को सुनिश्चित करना है, अपने बेहतर स्वास्थ्य का नियोजन करना है और भगवान धन्वन्तरि से प्रार्थना करनी है कि वे समस्त जगत को निरोग कर मानव समाज को दीर्घायु प्रदान करें.

भगवान धन्वन्तरि आप सभी को निरंतर उत्तम स्वास्थ्य, तेज (ऊर्जा) और दीर्घायु प्रदान करें यही मंगलकामनाएं !

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जानिए क्यों महत्वपूर्ण है नवरात्र में दुर्गाष्टमी और महानवमी | Navratri | Maha Ashtami | Maha Navami | Date | Tithi | Shubh Muhurat | Significance | Puja | Chaitra Navratri | Shardiya Navratri | Goddess Durda

Navratri is one of the most important festivals in the Sanatan Dharma. Navratri festival celebrated in honor of Goddess Durga, an aspect of Adishakti, the Supreme Goddess (Goddess Mahadevi/Maheshwari). It's celebrated all over the world, typically falling between September and October during the month of Ashvin, and lasts for nine days. Nav means nine and Ratri means nights. Maha Ashtami and Maha Navami is an important day during the festival of Navratri. Maha Ashtami falls on the eighth day of Navratri. Maha Ashtami is also known as Durga Ashtami. Usually, Maha Navami puja is celebrated on the next day of Maha Ashtami.

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नवरात्रों में मां आदिशक्ति के नौ विभिन्न रुपों की पूजा की जाती है. इसी देवी आदिशक्ति को माँ पार्वती, महादेवी, महेश्वरी, दुर्गा, भगवती, शिवा (शिवानी), अम्बा, जगदम्बा, भवानी, चामुण्डा, शक्ति, पराशक्ति, जगतजननी, सर्वकुलमाता, माँ तथा मूलप्रकृति आदि नामों से भी जाना गया है. आदिशक्ति जगदम्बा की परम कृपा प्राप्त करने हेतु सम्पूर्ण भारत वर्ष में नवरात्रि का पर्व वर्ष में दो बार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तथा आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को बड़ी श्रद्धा, भक्ति व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, जिसे वसन्त व शारदीय नवरात्रि के नाम से जाना जाता है. शारदीय नवरात्रि में आने वाली अष्टमी को दुर्गा अष्टमी अथवा महा अष्टमी तथा नवमी को दुर्गा नवमी अथवा महानवमी कहा जाता है.

नवरात्रि में दुर्गाष्टमी व महानवमी पूजन का बड़ा ही महत्व है. भविष्य पुराण के उत्तर-पूर्व में भी दुर्गाष्टमी व महानवमी पूजन के विषय में भगवान श्रीकृष्ण से धर्मराज युधिष्ठिर का संवाद मिलता है, जिसमें दुर्गाष्टमी व महानवमी पूजन का स्पष्ट उल्लेख है. यह पूजन प्रत्येक युगों, सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग तथा कल्पों व मन्वन्तरों आदि में भी प्रचलित था. यह पूजन युगों युगों से निरन्तर चला आ रहा है, जो कलियुग में विशेष फलदायी है. देव, दानव, राक्षस, गन्धर्व, नाग, यक्ष, किन्नर, मनुष्य आदि अष्टमी व नवमी को पूजते है. माँ आदिशक्ति सम्पूर्ण जगत्‌ में माँ पार्वती, महादेवी, महेश्वरी, दुर्गा आदि नाम से विख्यात हैं. माँ आदिशक्ति का पूजन अष्टमी व नवमी को करने से कष्टों का निवारण होता हैं, शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है और इच्छित मनोकामनायें पूर्ण होती है. 'दुर्गा अष्टमी और महानवमी' ये दोनों तिथि परम कल्याणकारी, धर्म की वृद्धि करने वाली, पवित्र और सुख-समृद्धि देने वाली है.

अधिकांश घरों में जातक नौ दिनों तक चलने वाले इस नवरात्रि पर्व में पूरे नौ दिनों तक व्रत (उपवास) रखते है, किन्तु माहेश्वरियों में मात्र 'साधक जातक' के ही नौ दिन व्रत रखने की परंपरा है. अन्य माहेश्वरीजन ज्यादातर केवल अष्टमी व नवमी को ही व्रत रखकर माँ आदिशक्ति की आराधना करते है. माहेश्वरी समाजजनों में अढ़ाई दिन का उपवास रखने की भी परंपरा है (अपने-अपने कुल की परंपरा के अनुसार दुर्गा अष्टमी अथवा महानवमी को दोपहर में माता को भोग बताकर उपवास छोड़ा जाता है). नवरात्रि की अष्टमी व नवमी की कल्याणप्रद, शुभ बेला श्रद्धालु भक्तजनों को मनोवांछित फल देकर व्रत व पूजन महोत्सव के सम्पन्न होने के संकेत देती है. माँ दुर्गा की आराधना से व्यक्ति एक सद्गृहस्थ जीवन के अनेक शुभ लक्षणों- "धन, ऐश्वर्य, पत्नी, पुत्र, पौत्र व स्वास्थ्य" से युक्त हो जीवन के अंतिम लक्ष्य मोक्ष को भी सहज ही प्राप्त कर लेता है. इतना ही नहीं बीमारी, महामारी, बाढ़, सूखा, प्राकृतिक उपद्रव व शत्रु से घिरे हुए किसी राज्य, देश व सम्पूर्ण विश्व के लिए भी माँ भगवती की आराधना परम कल्याणकारी है.


क्यों महत्वपूर्ण है अष्टमी व नवमी तिथि?
अष्टमी तिथि के देवता शिव (महेश्वर) है और नवमी तिथि की देवी आदिशक्ति मॉ महेश्वरी (दुर्गा) है. शास्त्रों के अनुसार महेश्वर (शिव) अर्द्धनारीश्वर है अर्थात शिव पुरूष-स्त्री दोनों का प्रतीक है. शास्त्रों में बताया गया है की मूलतः शिव और शक्ति एक ही है, अभिन्न है. जहां शिव हैं वहां शक्ति भी है और जहां शक्ति है वहीं शिव भी विराजमान हैं. शिव और शक्ति, महेश और पार्वती एकदूजे में समाहित है. शिव की सक्रिय अवस्था का नाम ही शक्ति है. शिव संकल्प-शक्ति है और पार्वती उन संकल्पों को मूर्त रूप देनेवाली क्रियाशक्ति/ऊर्जाशक्ति है (As per Devi Puran Adhi Parashakti is considered to be a main source of energy for the creation of the whole universe). शिव रूप में संकल्प किये जाते है और शक्ति (पार्वती) रूप संकल्पो को क्रियान्वित करता है. शास्त्रों में वर्णन आता है की शक्ति के बिना शिव 'शव के समान' है और शिव के बिना शक्ति 'शून्य' है. शिव के बिना शक्ति का कोई अस्तित्व नहीं और शक्ति के बिना शिव शव के समान है. शिव को शक्ति की आत्मा कहा जा सकता है और शक्ति को शिव का शरीर. ऐसा समझें की जैसे शिव आत्मा है और शक्ति है शरीर. शुभ (अच्छे) संकल्प करना और उन्हें क्रियान्वित करना यही है विजय (सफलता) का रहस्य और यही है नवरात्रि, यही है नवरात्रि का सन्देश, यही है नवरात्रि का रहस्य. इसीलिए नवरात्रि का अंतिम दिन विजय का दिन माना जाता है, इसे "विजयादशमी" कहा जाता है. नवरात्रि के व्रत, पूजा-आराधना से जातक को संकल्प लेने और उन्हें क्रियान्वित करने की शक्ति प्राप्त होती है इसीलिए नवरात्रि में और विशेष रूप से नवरात्र के अष्टमी व नवमी दोनों तिथियों में महेश (भगवान शिव के सगुन-साकार रूप के लिए प्रयोग किये जानेवाला 'महेश्वर' यह एक संस्कृत नाम है, जिसका संक्षिप्त संस्करण है- महेश) और पार्वती की एकत्रित पूजन का विशेष महत्व है.


नवरात्रि के आठवें दिन की देवी माँ महागौरी हैं. परम कृपालु माँ महागौरी कठिन तपस्या कर गौरवर्ण को प्राप्त कर भगवती महागौरी के नाम से सम्पूर्ण विश्व में विख्यात हुई. भगवती महागौरी की आराधना सभी मनोवांछित को पूर्ण करने वाली और भक्तों को अभय, रूप व सौदर्य प्रदान करने वाली है. अर्थात्‌ शरीर में उत्पन्न नाना प्रकार के विष व्याधियों का अंत कर जीवन को सुख-समृद्धि व आरोग्यता से पूर्ण करती हैं. अष्टमी तिथि को महागौरी का पूजन करने से असंभव कार्य भी संभव प्रतीत होता है. नवरात्र के आठवें दिन मां महागौरी की पूजा करने से शादी-विवाह में आ रही अथवा आनेवाली बाधा दूर हो जाती है. अष्टमी तिथि को महालक्ष्मी नामक योगिनी जिनका वास ईशान कोण है, की पूजा का विधान भी है. माहेश्वरी समाज में दुर्गा अष्टमी की रात्रि में (आधी रात तक) माता के भजन करते हुए जागरण करने की परंपरा है (वर्तमान समय में इस परंपरा को निभाने में कमी आयी है लेकिन समाज को इस परंपरा का श्रद्धापूर्वक निर्वाहन करना चाहिए). अष्टमी की शाम से ही नवमी की तिथि लग जाती है. महानवमी का दिन नौ दिन के उपवास और तप का आखिरी दिन होता है.

नवमी तिथि की अधिष्ठात्री देवी साक्षात मां दुर्गा है. इनकी उपासना से अणिमा, गरिमा, लधिमा, ईशित्व एवं वशित्व समेत आठों सिद्धियां मिलती हैं. नवमी तिथि को ब्रह्माणी नामक योगिनी जिनका वास पूर्व दिशा में है, की पूजा का भी विधान है. उक्त तिथियों में मां दुर्गा के विभिन्न रूपों एवं योगिनियों की पूजा करने से साधक को मनोवांछित फल मिलने की बात विद्वानों ने कही है.

नवमी तिथि का यह दिन माँ सिद्धिदात्री (दुर्गा) की पूजा के लिए विशेष महत्वपूर्ण है. माँ भगवती ने नववें दिन देवताओं और भक्तों के सभी वांछित मनोरथों को सिद्ध कर दिया, जिससे माँ सिद्धिदात्री के रूप में सम्पूर्ण विश्व में व्याप्त हुई. परम करूणामयी सिद्धिदात्री की अर्चना व पूजा से भक्तों के सभी कार्य सिद्ध होते हैं, बाधाएँ समाप्त होती हैं एवं सुख व मोक्ष की प्राप्ति होती है. नवरात्रि के समापन के लिए ही नवमी पूजन में हवन किया जाता है. महानवमी के दिन हवन का विशेष महत्व है.


नवरात्रि में माँ भगवती की पूजा-आराधना करते हुए भगवती से सुख, समृद्धि, यश, कीर्ति, विजय, आरोग्यता की कामना करनी चाहिए. भूलोक के जितने व्रत एवं दान हैं उनमें नवरात्र व्रत सर्वश्रेष्ठ माना गया है, लाल चंदन व आपटा-पत्र (समी-पत्र/सोनपत्ता) से की गई माँ की आराधना विशेष फलदाई होती है. नवरात्र में मां दुर्गा के साथ-साथ देवाधिदेव महादेव, गणेशजी व सूर्य देवता की पूजा-आराधना बताई गई है. कुंजिका स्त्रोत्र, दुर्गा चालीसा, महालक्ष्मी अष्टक का पाठ करने से, चामुंडा मंत्र का जाप करने से और नौ दिवसीय देवी भागवत कथा करने से साधक पर माता की कृपा होती है. शत्रु बाधा दूर होती है. मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. नवरात्र में विघि विधान से मां का पूजन करने से सभी कार्य सिद्ध होते हैं और चित्त को शांति मिलती है.

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सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते ।।

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Know about the whole Family of Lord Ganesha | Son of Lord Shiva | जानिए, भगवान गणेशजी के सम्पूर्ण परिवार के बारेमें... | Son of Goddess Maheshwari

Lord Ganesha son of Lord Shiva and Goddess Parvati (Goddess Durga / Goddess Maheshwari). Ganpati, Ganesha or Ganesh is the only god whose every family member is worshipped by people. Also, worshipping even one of the family members of Ganesha’s family brings happiness in people’s life by fulfilling their desires.


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Today we will tell you some important things about Lord Ganesha’s family…

Father : Lord Shiva


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Lord Ganesha’s father is Lord Mahesha (Shiva). The name 'Mahesh' is short version of a name Maheshwar or Maheshwara of Sanskrit origin. Mahesha is considered to be the life of this universe. If Mahesha does not exist, there will be no universe, no life. This is why Lord Mahesha is known as 'kalo ka Kaal- Mahakal'.

Shiva (शिव) is the name of Lord Mahesha’s Nirgun and Nirakaar form and Mahesh is the name of Lord Shiva's Sagun and Sakar form. Mahesh is made up of two words Maha and Ish (Ishwar / ईश्वर), their meanings are respectively great and lord. The meaning of name Mahesh is supreme power. Mahesh means God of Gods (Devadhidev, Maheshwar or Mahadev).

It is Lord Mahesha who gives life and even takes it. Worshipping Mahesha is considered to remove all sins from one’s life.

Mother : Goddess Parvati (Goddess Adishakti Durga / Goddess Maheshwari)


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Ganesha’s mother is Jagdamba Parvati. Parvati is considered to be the strength. Body without strength is useless. Strength is power.

Brother : Kartikeya


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Kartikeya (elder brother) is the most famous brother of Ganesha (However, he has four brothers like Sukesh, Jalandhar, Aiyappa and Bhuma). Kartikeya hold the rank of a commander of all the Gods. He is the embodiment of courage.

Sister : Ashok Sundari


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Ashok Sundari is the sister of Lord Ganesha. Ashok Sundari was married to King Nahusha.

Wife : Siddhi and Riddhi


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Lord Ganesha has two wives - Siddhi and Riddhi (Buddhi). While Siddhi helps in accomplishment of all kinds of work, Buddhi increases wisdom.

Son : Lord Ganesh has two sons, Shubh (Kshema) and Labh and his (Lord Ganesha's) grandsons are called Amod and Pramod and Daughter in laws Tushti and Pushti (Tushti is Shubh's Wife and Pushti is Labh's Wife). While Kshema (Shubh) takes care of our acquired virtue, wealth, knowledge and reputation, Labh on the other hand increases all these constantly.

More facts about Ganesha

- Ganesha is Lord of water
- Red flowers are his favorites
- He lovs Durva and Apta leaves (Sonpatta)
- Paash and Ankush are his main armory
- During Satyuga Ganpati’s carrier was Lion. During Tretayug Ganesha’s carrier was peacock. During Dwapar mouse became his carrier. In Kalyug he rides a Elephant, Horse and Palanquin (Palki).
- The Jap Mantra of Ganesha is “Om Gam Ganpatye Namaha.”
- Ladoo’s made of Besan and Modak’s are relished by Ganesha.
- Ganesh Vandana, Ganesh Stuti, Ganesh Chalisa, Ganesh Arti, Shri Ganesh Sahastranamavali are the forms of worshippings of Ganesha.

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Understand, Guru is not God but only a Guide | The biggest mistake of man is to consider Guru as God and God as Stone –Maheshacharya Premsukhanand Maheshwari | Guru Purnima | Guru Purnima Date

Guru is Guru and God is God. गुरु को भगवान और भगवान को पत्थर मानना इंसान की सबसे बड़ी भूल


Maheshacharya Premsukhanand Maheshwari: The first full moon after the summer solstice in the month of Ashadha (July-August), is known as Guru Purnima. This sacred day marks the first transmission of the yogic sciences from Lord Mahesha (Lord Shiva) – the Adiyogi or first yogi – to his first disciples, the Saptarishis, the seven celebrated sages. Thus, the Adiyogi Lord Mahesha became the Adi Guru or first Guru on this day. The Saptarishis carried this knowing throughout the world. Guru Purnima also marks the birth anniversary of Ved Vyas (Maharishi Vedvyas ji is the son of Adi Maheshacharya Maharishi Parashar. Maheshacharya, This is the highest Guru post of Maheshwari community). Maharishi Vedvyas has compiled the important epic Mahabharata, Shrimad Bhagavad Gita, 18 Puranas as well as the Vedas.

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आषाढ़ माह (जुलाई-अगस्त) में ग्रीष्म संक्रांति के बाद पहली पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है. यह पवित्र दिन भगवान महेश (भगवान शिव) - आदियोगी या पहले योगी - से उनके पहले शिष्यों, सप्तऋषियों, सात प्रसिद्ध ऋषियों तक योग विज्ञान के पहले प्रसारण का प्रतीक है. इस प्रकार, इस दिन आदियोगी भगवान महेश आदि गुरु या पहले गुरु बने. सप्तऋषियों ने इस ज्ञान को दुनिया भर में पहुंचाया. गुरु पूर्णिमा वेद व्यास की जयंती का भी प्रतीक है (महर्षि वेदव्यास जी आदि महेशाचार्य महर्षि पराशर के ही पुत्र है. महेशाचार्य यह माहेश्वरी समाज का सर्वोच्च गुरु पद है।). महर्षि वेदव्यास ने महत्वपूर्ण महाकाव्य महाभारत, श्रीमद्भगवद्गीता, 18 पुराण के साथ ही वेदों का भी संकलन किया है.

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'परिवार, समाज, गुरु और धर्म'

यह भारतवर्ष की समाजव्यवस्था का मूल आधार है, यही भारतवर्ष की शक्ति है. भारतवर्ष की सनातन परंपरा के अनुसार आराध्य (ईश्वर या भगवान) की भक्ति की जाती है जिससे की उनकी कृपा भक्त पर अनवरत, सदैव बरसती रहे. गुरुओं और धर्माचार्यों के प्रति श्रद्धा रखी जाती है की उनका आशीर्वाद और मार्गदर्शन प्राप्त होता रहे. गुरु सही रास्ता दिखाता है, देखने की शक्ति ईश्वर से प्राप्त होती है. गुरु चलना सिखाता है; सिखाने, सीखने और चलने की शक्ति ईश्वर से प्राप्त होती है. 'ईश्वर' स्वयंभू शक्ति (ऊर्जा) का अविनाशी-कभी ख़त्म ना होनेवाला भंडार है. साधु-संत-सन्यासी-धर्माचार्य-गुरु इनका कार्य (दायित्व) है की शिष्यों और समाज को मार्गदर्शन करें की वे ईश्वर (भगवान) द्वारा स्थापित, दर्शित, परिभाषित 'नैतिक और मानवीय मूल्यों' को आधार और आदर्श मानकर उसपर चले जिससे की सभी का जीवन सुखमय बने, सभी वास्तविक रूप से सुखी हो.

किसी पर भी अपनी श्रद्धा-भक्ति रखने से पहले इसकी जानकारी होना जरुरी है की श्रद्धा और भक्ति में क्या अंतर है? गुरु और भगवान में क्या अंतर है? शास्त्र कहते है की गुरु पर 'श्रद्धा' होती है और भगवान की 'भक्ति' की जाती है. श्रद्धा और भक्ति में बड़ा मामूली अंतर है. कभी-कभी तो यह लगता है कि दोनों आपस में दूध-पानी की तरह इस प्रकार घुल गए हैं कि उन्हें अलग से पहचानना कठिन है. श्रद्धा और भक्ति में अति सूक्ष्म अंतर होते हुए भी अर्थ और भाव की दृष्टि से काफी असमानता है. श्रद्धा अनुशासन में बंधी है तो भक्ति न्योछावर करती रहती है अपने आप को, अर्पण करती है अपने सर्वस्व को. श्रद्धा में आदर का भाव रहता है, आदर की सरिता बहती है, तो भक्ति में प्रेम का समुद्र लहराता रहता है. बाहर से देखने में भक्ति भी श्रद्धा का ही एक रूप दिखाई देती है लेकिन भक्ति का पलड़ा केवल इसलिए भारी है कि इसके साथ प्रेम भी जुड़ा है. श्रद्धा श्रेष्ठ के प्रति होती है जैसे की, गुरु या धर्माचार्य के प्रति. भक्ति 'आराध्य' के प्रति होती है जैसे की वंशदेवता, कुलदेवी, भगवान (ईश्वर). आराध्य के प्रति किसी की भक्ति भी रहती है और श्रद्धा भी, लेकिन गुरु के प्रति व्यक्ति की मात्र श्रद्धा ही रहती है, मात्र श्रद्धा ही रहनी चाहिए.

समस्या तब निर्मित होती है जब व्यक्ति 'गुरु और आराध्य', 'श्रद्धा और भक्ति' के मध्य के अंतर को समझता नहीं है अथवा जानता नहीं है. यहां पर एक बात को भी समझना आवश्यक है कि अंधश्रद्धा या अंध भक्ति दोनों ही व्यक्ति के लिए घातक हैं. चाहे श्रद्धा हो या भक्ति, रखने से पहले समीक्षा और मीमांसा अवश्य होनी चाहिए. यानी देख-सुनकर ही केवल किसी पर अपनी श्रद्धा-भक्ति स्थिर नहीं करनी चाहिए, बल्कि उसकी शास्त्र सम्मत मीमांसा करके, सोच-समझकर ही अपने भाव प्रकट करने चाहिए. इसे ना समझते हुए साधु-संत-सन्यासी-धर्माचार्य-गुरु के शिष्य बनने के बजाय भक्त बन जाना, धर्माचार्य/गुरु को भगवान और भगवान को पत्थर मानना यह इंसान की सबसे बड़ी नासमझी है, सबसे बड़ी भूल है.

हाल ही के दिनों में बाबा गुरमीत राम रहीम को बलात्कार के आरोप में सजा सुनाये जाने और उसके बाद की घटनाओं को लेकर जनसामान्यों में, मिडिया पर, सोशल मिडिया पर खूब चर्चा हो रही है. अनैतिक, अशोभनीय, अपराधिक, गैरकानूनी काम करनेवाला कोई भी हो, उसे देश के कानून द्वारा निर्धारित सजा होनी ही चाहिए, बल्कि जिन पर नैतिक और मानवीय मूल्यों पर चलने का मार्गदर्शन करने का दायित्व है उन साधु-संत-सन्यासी-धर्माचार्य-गुरुओं द्वारा अनैतिक आचरण अथवा कार्य होता है तो उन्हें ऐसा कार्य करनेवाले आम लोगों से दुगनी सजा होनी चाहिए. लेकिन मिडिया पर, सोशल मिडिया पर जो चर्चाएं हो रही है ज्यादातर उनमें ऐसा कहा-सुनाया जा रहा है की सारे के सारे साधु-संत-सन्यासी-धर्माचार्य-गुरु 'आसाराम और राम रहीम' जैसे ही है और इन्हे होना ही नहीं चाहिए, समाज को नैतिक और मानवीय मूल्यों पर चलने का मार्गदर्शन करनेवाली यह जो 'व्यवस्था' है उसे समाप्त कर देना चाहिए. यह तो ऐसे ही है की चुने हुए 'कुछ' लोकप्रतिनिधि गलत काम करनेवाले और अपराधी साबित हो जाये तो पूरी के पूरी लोकतान्त्रिक व्यवस्था (डेमोक्रेसी) को ही समाप्त कर दिया जाये या 'कुछ' डॉक्टर गलत काम करनेवाले और अपराधी साबित हो जाये तो पूरी के पूरी डॉक्टरी व्यवस्था को, हॉस्पिटल की व्यवस्था (सिस्टम) को ही समाप्त कर दिया जाये. गुरमीत राम रहीम और आसाराम जैसे लोगों की आड़ लेकर भारतवर्ष की सनातन धार्मिक-आध्यात्मिक विरासत जो की भारतवर्ष की समाजव्यवस्था का मूल आधार है को समाप्त करने का यह जो खेल खेला जा रहा है इसके खतरे को, उसके अच्छे-बुरे, सही-गलत पहलू को भी जनसामान्यों को समझना होगा. लोगों को अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए इस बात को समझना होगा की हरएक क्षेत्र में फिर वह चाहे राजनीती हो, मिडिया हो, डॉक्टर और हॉस्पिटल्स हो, शिक्षा के क्षेत्र में अध्यापक (teachers) हो या आध्यात्मिक जगत में कार्य करनेवाले साधु-संत-सन्यासी-धर्माचार्य-गुरु हो; हर क्षेत्र में गलत-अनैतिक-अपराधिक कार्य करनेवाले 'कुछ' लोग होते ही है लेकिन इन 'कुछ' गलत लोगों के कारन उस पूरी की पूरी व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करना अथवा उस पूरी व्यवस्था को ही समाप्त कर देना चाहिए ऐसा सोचना भी, ना तो समझदारी है और ना ही हितकारी. कुछ अपराधिक-गलत लोगों के कारन उस क्षेत्र में कार्य करनेवाले सारे के सारे (सभी) लोगों को गलत और अपराधी समझना भी सही नहीं है (चर्चा करते हुए भी इस बात को ध्यान में रखना आवश्यक है की आप-हम 'सभी के सभी' लोगों के बारे में नहीं बल्कि अपराधिक और गलत काम करनेवाले 'कुछ' लोगों की बात कर रहे है, उन 'कुछ' लोगों का ही धिक्कार और निंदा कर रहे है, 'सब'' की नही).

'परिवार, समाज, गुरु और धर्म' यह भारतवर्ष की समाजव्यवस्था का मूल आधार है, यही भारतवर्ष की शक्ति है. इस आधार को, इस शक्ति को यदि समाप्त कर दिया जायेगा तो भारतवर्ष में अधर्म की, अराजक की स्थिति बन जाएगी. 'गलत को हटाओ और सही को बढ़ाओ' इसी सही निति को अपनाकर भारतवर्ष की मूल शक्ति को कायम रखा जाना चाहिए, कायम रखना होगा.

अनैतिक-अपराधिक कार्य करनेवाले साधु-संत-सन्यासी-धर्माचार्य-गुरुओं के खिलाफ कोई कड़ा निर्णय लेने का कार्य भी सनातन (हिन्दू) धर्म के अखाड़ों और शंकराचार्यों को करना चाहिए. जहाँ तक मेरी जानकारी है, आसाराम, रामपाल, गुरमीत राम रहीम जैसे खुद को संत या गुरु कहलाने बाले लोग अखाड़ों और शंकराचार्यों द्वारा 'साधु-संत-सन्यासी-धर्माचार्य-गुरु' के रूप में अधिकृत ही नही है (अखाड़े द्वारा प्रमाणित और अधिकृत होने के लिए एक प्रक्रिया होती है जिसमे चारित्र्य, आचरण, साधना, ज्ञान आदि के कसौटी पर परखने के बाद ही साधक को संत, महंत, मंडलेश्वर आदि अलग-अलग श्रेणियों में रखते हुए प्रमाणित या अधिकृत किया जाता है). अखाड़ों और शंकराचार्यों को चाहिए की, जो साधु-संत-सन्यासी-धर्माचार्य-गुरु सनातन धर्म के सर्वोच्च प्रबंधन संस्था अखाड़ों द्वारा मान्यताप्राप्त नही है, सनातन धर्म की जड़ों से (अखाड़ों से) जुड़े हुए नहीं है उनकी यह बात (जानकारी) समय-समयपर सार्वजनिक करनी चाहिए. जनसामान्यों को भी अपने विवेक को इतना तो जागृत रखना ही चाहिए की किसी साधु-संत-सन्यासी-धर्माचार्य-गुरु के अच्छा वक्ता होने या बड़े ताम-झाम होने से किसी के प्रभाव में जाने के बजाय उसके आचरण, चारित्र्य, साधना और ज्ञान के कसौटी पर तथा वह संत-गुरु-धर्माचार्य 'सनातन धर्म' की मूल परंपरा से जुड़ा हुवा है या नहीं इसे समझकर सही और गलत (लोगों) में फर्क कर सकें, सही क्या है और गलत क्या है इसे समझ सकें.

महेशाचार्य प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी (पीठाधिपति, माहेश्वरी अखाड़ा)